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जालिम ज़माना क्या जाने नाज़ुक दिल का हाल, सुनिए सहगल के स्वरों में

खरा सोना गीत - गम दिए मुस्तकिल   प्रस्तोता - दीप्ती सक्सेना  स्क्रिप्ट - सुजोय चट्टरज़ी प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  

१२ फरवरी - आज का गाना

गाना:  ग़म दिये मुस्तक़िल चित्रपट: शाहजहाँ संगीतकार: नौशाद अली गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी गायक: कुंदन लाल सहगल ग़म दिये मुस्तक़िल, इतना नाज़ुक है दिल, ये न जाना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना दे उठे दाग लो उनसे ऐ महलों कह सुनना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना दिल के हाथों से दामन छुड़ाकर ग़म की नज़रों से नज़रें बचाकर उठके वो चल दिये, कहते ही रह गये हम फ़साना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना कोई मेरी ये रूदाद देखे, ये मोहब्बत की बेदाद देखे फूक रहा है जिगर, पड़ रहा है मगर मुस्कुराना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना ग़म दिये मुस्तक़िल, इतना नाज़ुक है दिल, ये न जाना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना

ओल्ड इस गोल्ड का गोल्डन जुबली एपिसोड गायिकी के सरताज कुंदन लाल सहगल के नाम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 50 'ओ ल्ड इस गोल्ड' की सुरीली धाराओं के साथ बहते बहते हम पूरे 50 दिन गुज़ार चुके हैं. जी हाँ, आज 'ओल्ड इस गोल्ड' की गोल्डन जुबली अंक है. आज का यह अंक क्योंकि बहुत ख़ास है, 'गोलडेन' है, तो हमने सोचा क्यूँ ना आज के इस अंक को और भी यादगार बनाया जाए आप को एक ऐसी गोल्डन वोईस सुनाकर जो फिल्म संगीत में भीष्म पितामाह का स्थान रखते हैं. यह वो शख्स थे दोस्तों जिन्होने फिल्म संगीत को पहली बार एक निर्दिष्ट दिशा दिखाई जब फिल्म संगीत जन्म तो ले चुका था लेकिन अपनी एक पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था. जी हाँ, 1931 में जब फिल्म संगीत की शुरुआत हुई तो यह मुख्या रूप से नाट्य संगीत और शास्त्रिया संगीत पर पूरी तरह से निर्भर था. लेकिन इस अज़ीम फनकार के आते ही जैसे फिल्म संगीत ने करवट बदली और एक नयी अलग पहचान के साथ तेज़ी से लोकप्रियता की सीढियां चढ्ने लगा. यह कालजयी फनकार और कोई नहीं, यह थे पहले 'सिंगिंग सुपरस्टार' कुंदन लाल सहगल. फिल्म संगीत में सुगम संगीत की शैली पर आधारित गाने उन्ही से शुरू हुई थी कलकत्ता के न्यू थियेटर्स में जहाँ आर सी बोराल, त