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बहा के लहू इंसां का मिलेगी क्या...तुमको वो जन्नत...

आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ की 'ऑडियो-वीडियो' पहल सड़कों पर पड़े लोथड़ों में ढूँढ रहा फिरदौस है जो, सौ दस्त, हज़ार बाजुओं पे लिख गया अजनबी धौंस है जो, आँखों की काँच कौड़ियों में भर गया लिपलिपा रोष है जो, ईमां तजकर, रज कर, सज कर निकला लिए मुर्दा जोश है जो, बेहोश है वो!!!! ओ गाफ़िल! जान इंसान है क्या, अल्लाह है क्या, भगवान है क्या, कहते मुसल्लम ईमान किसे, पाक दीन इस्लाम किसे, दोजख है कहाँ, जन्नत है कहाँ, उल्फत है क्या, नफ़रत है कहाँ, कहें कुफ़्र किसे, काफ़िर है कौन, रब के मनसब हाज़िर है कौन, गीता, कुरान का मूल है क्या, तू जान कि तेरी भूल है क्या!!!! सबसे मीठी जुबान है जो, है तेरी, तू अंजान है क्यों? उसमें तू रचे इंतकाम है क्यों? पल शांत बैठ, यह सोच ज़रा, लहू लेकर भी तेरा दिल न भरा, सुन सन्नाटे की सरगोशी, अब तो जग, तज दे बेहोशी, अब तो जग, तज दे बेहोशी। -विश्व दीपक 'तन्हा' ऊपर लिखी 'तन्हा' की कविता से स्पष्ट हो गया होगा कि हम क्या संदेश लेकर हाज़िर हुए हैं। आज दुनिया में हर जगह आतंक का साया है। कोई रोज़ी-रोटी कमाकर नहीं लौट पा रहा है, तो कोई दवा लेकर नहीं वापिस हो पा रह...