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जवाँ है मोहब्बत हसीं है ज़माना...यादें है इस गीत में मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ की

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 98 आ ज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' बहुत ख़ास है क्योंकि आज हम इसमे एक ऐसी आवाज़ आप तक पहुँचा रहे हैं जो ४० के दशक मे घर घर गली गली गूँजा करती थी। १९४७ में देश के बँटवारे के बाद वो फनकारा पाक़िस्तान चली गयीं और पीछे छोड़ गयीं अपनी आवाज़ का वो जादू जिन्हे आज तक सुनते हुए हमारे कान नहीं थकते और ना ही उनकी आवाज़ को कोई भुला ही पाया है. लताजी के आने से पहले यही आवाज़ थी हमारे देश की धड़कन, जी हाँ, हम बात कर रहे हैं मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ की। नूरजहाँ की आवाज़ उस ज़माने मे इतनी लोकप्रिय थी कि उन दिनों हर उभरती गायिका उन्हे अपना आदर्श बनाकर पार्श्वगायन के क्षेत्र में क़दम रखती थीं। यहाँ तक कि अगर हम सुरकोकिला लताजी के शुरुआती दो चार फ़िल्मों के गानें सुनें तो उनमें भी नूरजहाँ का अंदाज़ साफ़ झलकता है। यह बेहद अफ़सोस की बात है हम भारतवासियों के लिए कि स्वाधीनता के बाद नूरजहाँ अपने पति शौकत अली के साथ पाक़िस्तान जा बसीं जिससे कि हमारी यहाँ की फ़िल्में उनकी आवाज़ के जादू से वंचित रह गयीं। कहते हैं कि कला की कोई सीमा नहीं होती और ना ही कोई सरहद इसे रोक पायी है। नूरजहाँ की ...

जवाँ है मुहब्बत, हसीं है ज़माना....आज भी नौशाद के संगीत का

"आज पुरानी यादों से कोई मुझे आवाज़ न दे...", नौशाद साहब के इस दर्द भरे नग्में को आवाज़ दी थी मोहम्मद रफी साहब ने, पर नौशाद साहब चाहें या न चाहें संगीत प्रेमी तो उन्हें आवाज़ देते रहेंगें, उनके अमर गीतों को जब सुनेंगें उन्हें याद करते रहेंगे. तपन शर्मा सुना रहें हैं दास्ताने नौशाद, और आज की महफ़िल है उन्हीं की मौसिकी से आबाद. नौशाद का जन्म २५ दिसम्बर १९१९ में एक ऐसे परिवार में हुआ, जिसका संगीत से दूर दूर तक नाता नहीं था और न ही संगीत में कोई रुचि थी। पर नौशाद शायद जानते थे कि उन्हें क्या करना है। दस साल की उम्र में भी जब वे फिल्म देख कर लौटते तो उनकी डंडे से पिटाई हुआ करती थी। ये उस समय की बातें हैं जब फिल्मों में संगीत नहीं हुआ करता था। और थियेटर में पर्दे के पास बैठे संगीतकार ही संगीत बजा कर फिल्म के दृश्य के हिसाब से तालमेल बिठाया करते थे। वे कहते थे कि वे फिल्म के लिये थियेटर नहीं जाते बल्कि उस ओर्केस्ट्रा को सुनने जाते हैं। उन संगीतकारों को सुनने जो हारमोनियम, पियानो, वायलिन आदि बजाते हुए भी दृश्य की गतिविधियों के आधार पर आपस में संतुलन बनाये रखते हैं। और यही वो पल होते ...