ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 34 'ओ ल्ड इस गोल्ड' की एक और शाम लेकर हम हाज़िर हैं दोस्तों! आज हम आप को एक ऐसा गीत सुनवाने जा रहे हैं जिसे आप ने एक लंबे अरसे से नहीं सुना होगा, और आप में से कई लोग तो शायद पहली बार यह गीत सुनेंगे. यह जो आज का गीत है वो है तो एक चर्चित फिल्म से ही, लेकिन इस गीत को शायद उतना बढावा नहीं मिला जीतने फिल्म के दूसरे गीतों को मिला. इससे पहले कि इस गीत का ज़िक्र हम करें, गीता दत्त के बारे में चंद अल्फ़ाज़ कहना चाहूँगा. गीता दत्त की आवाज़ की ख़ासियत यह थी कि कभी उसमें वेदना की आह मिलती तो कभी रूमानियत की शोखी, कभी भक्ति रस में लीन हो जाती तो कभी अपनी आवाज़ को लंबा खींचकर लोगों को भाव-विभोर कर देती. अपने शुरूआती दिनों में गीता दत्त को केवल भक्ति रचनाएँ ही गाने को मिलते थे. उनकी आवाज़ में भक्ति गीत बेहद सुंदर जान पड्ते. ऐसा लगने लगा था कि गीता दत्त की प्रतिभा को भक्ति रस के खाँचे में ही क़ैद कर दिया जाएगा. लेकिन संगीतकार ओ पी नय्यर ने पहली बार अपनी पहली ही फिल्म "आसमान" में गीता दत्त से गाने गवाए और यहाँ से शुरू हुई एक नशीली लंबी यात्रा. फिर तो जैसे नय्