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फिल्मी चक्र समीर गोस्वामी के साथ || एपिसोड 06 || नूतन

Filmy Chakra With Sameer Goswami  Episode 06 Nutan  फ़िल्मी चक्र कार्यक्रम में आप सुनते हैं मशहूर फिल्म और संगीत से जुडी शख्सियतों के जीवन और फ़िल्मी सफ़र से जुडी दिलचस्प कहानियां समीर गोस्वामी के साथ, लीजिये आज इस कार्यक्रम के छठे एपिसोड में सुनिए कहानी लाजवाब बेमिसाल नूतन की...प्ले पर क्लिक करें और सुनें.... फिल्मी चक्र में सुनिए इन महान कलाकारों के सफ़र की कहानियां भी - किशोर कुमार शैलेन्द्र  संजीव कुमार  आनंद बक्षी सलिल चौधरी 

ए मेरे हमसफ़र रोक अपनी नज़र...जितनी उत्कृष्ट अभिनेत्री थी नूतन उनकी गायिकी में भी उतना ही क्लास था

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 634/2010/334 प्रि य दोस्तों, नमस्कार और स्वागत है आपका आप ही के इस मनचाहे महफ़िल में जिसका नाम है 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। इस स्तंभ में इन दिनों जारी है लघु शृंखला 'सितारों की सरगम' जिसमें हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिन्हें गाया है अभिनेता - अभिनेत्रियों नें। जी नहीं, हम 'सिंगिंग् स्टार्स' की बात नहीं कर रहे, बल्कि हम केवल स्टार्स की बात कर रहे हैं जो मूलतः अभिनेता या अभिनेत्री हैं, लेकिन किसी न किसी फ़िल्म में एक या एकाधिक गीत गाया है। राज कपूर, दिलीप कुमार, और मीना कुमारी के बाद आज बारी है अभिनेत्री नूतन की। अभिनेत्री व फ़िल्म निर्मात्री शोभना समर्थ की बेटी नूतन को शोभना जी नें ही अपनी निर्मित फ़िल्म 'हमारी बेटी' में लौंच किया था, जिसमें नूतन नें एक गीत भी गाया था, जिसके बोल थे "तूने कैसा दुल्हा भाये री बाँकी दुल्हनिया"। 'हमारी बेटी' १९५० की फ़िल्म थी। इसके दस साल बाद, १९६० में शोभना समर्थ नें अपनी छोटी बेटी तनुजा को लौंच करने के लिए बनाई फ़िल्म 'छबिली' जिसमें मुख्य नायिका बनीं नूतन और इस फ़िल्म में संगीतकार

धड़कने लगा दिल नज़र झुक गयी....नूतन की अदाकारी और गीता दत्त से स्वर, दुर्लभ संयोग

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 275 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं पार्श्वगायिका गीता दत्त के गाए हुए कुछ सुरीले सुमधुर गीत जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। इन गीतों को चुनकर और इनके बारे में तमाम जानकारियाँ इकट्ठा कर हमें भेजा है पराग सांकला जी ने और उन्ही की कोशिश का यह नतीजा है कि गुज़रे ज़माने के ये अनमोल नग़में आप तक इस रूप में पहुँच रहे हैं। नरगिस, मीना कुमारी, कल्पना कार्तिक और मधुबाला के बाद आज बारी है अदाकारा नूतन की। नूतन भी हिंदी फ़िल्म जगत की एक नामचीन अदाकारा रहीं हैं जिनके अभिनय का लोहा हर किसी ने माना है। हल्के फुल्के फ़िल्में हों या फिर संजीदे और भावुक फ़िल्में, हर फ़िल्म में वो अपनी अमिट छाप छोड़ जाती थीं। उनके अभिनय से सजी तमाम फ़िल्में आज क्लासिक फ़िल्मों में जगह बना चुकी है। वो एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होने ५ बार फ़िल्मफ़ेयर के तहत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। नूतन मधुबाला, नरगिस या मीना कुमरी की तरह बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत या ग्लैमरस नहीं थीं, लेकिन उनकी सादगी के ही लोग दीवाने थे। उनकी ख़ूबसूरती उनके अंदर थी जो उनके स्वभाव

अब के बरस भेज भैया को बाबुल....एक अमर गीत एक अमर फिल्म से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 178 श रद तैलंग जी के पसंद पर कल आप ने फ़िल्म 'विद्यापति' का गीत सुना था लता जी की आवाज़ में, आज सुनिए लता जी की बहन आशा जी की आवाज़ में फ़िल्म संगीत के सुनहरे युग का एक और सुनहरा नग़मा। ससुराल में ज़िंदगी बिता रही हर लड़की के दिल की आवाज़ है यह गीत "अब के बरस भेज भ‍इया को बाबुल सावन में लीजो बुलाए रे, लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ, दीजो संदेसा भिजाए रे"। हमारे देश के कई हिस्सों में यह रिवाज है कि सावन के महीने में बहू अपने मायके जाती हैं, ख़ास कर शादी के बाद पहले सावन में। इसी परम्परा को इन ख़ूबसूरत शब्दों में ढाल कर गीतकार शैलेन्द्र ने इस गीत को फ़िल्म संगीत का एक अनमोल नगीना बना दिया है। इस गीत को सुनते हुए हर शादी-शुदा लड़की का दिल भर आता है, बाबुल की यादें, अपने बचपन की यादें एक बार फिर से तर-ओ-ताज़ा हो जाती हैं उनके मन में। देश की हर बहू अपना बचपन देख पाती हैं इस गीत में। फ़िल्म 'बंदिनी' का यह गीत फ़िल्माया गया था नूतन पर। 'बंदिनी' सन् १९६३ की एक नायिका प्रधान फ़िल्म थी जिसका निर्माण व निर्देशन किया था बिमल राय ने। जरासंध

प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 144 म जरूह सुल्तानपुरी, क़मर जलालाबादी, प्रेम धवन आदि गीतकारों के साथ काम करने के बाद सन् १९५८ में संगीतकार ओ. पी. नय्यर को पहली बार मौका मिला शायर साहिर लुधियानवी के लिखे गीतों को स्वर्बद्ध करने का। फ़िल्म थी 'सोने की चिड़िया'। इस्मत चुगतई की लिखी कहानी पर आधारित फ़िल्म कार्पोरेशन ऒफ़ इंडिया के बैनर तले बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था शाहीद लतीफ़ ने, और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे बलराज साहनी, नूतन और तलत महमूद। जी हाँ दोस्तों, यह उन गिनी चुनी फ़िल्मों में से एक है जिनमें तलत महमूद ने अभिनय किया था। इस फ़िल्म में तलत साहब और आशा भोंसले के गाये कम से कम दो ऐसे युगल गीत हैं जिन्हे अपार सफलता हासिल हुई। इनमें से एक तो था "सच बता तू मुझपे फ़िदा कब हुआ और कैसे हुआ", और दूसरा गाना था "प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ"। और यही दूसरा गीत आज के इस महफ़िल की शान बना है। साहिर साहब के क़लम से निकला हुआ, और प्रेमिका से प्यार करने की इजाज़त माँगता हुआ यह नग़मा प्रेम निवेदन की एक अनूठी मिसाल है। इस

तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजा...पति प्रेम की पवित्र भावनाओं को समर्पित एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 71 आ ज 'ओल्ड इज़ गोल्ड'के लिए हमने जिस गीत को चुना है उसमें एक पत्नी का अपने पति के लिए जो निष्पाप पवित्र प्रेम है उसका वर्णन हुआ है। इस गीत के बोल इतने सुंदर हैं कि जो पति-पत्नी के प्रेम को और भी कई गुना पावन कर देता है। लताजी की दिव्य आवाज़ और संगीतकार रवि का सुमधुर संगीत ने राजेन्द्र कृष्ण के बोलों को और भी ज़्यादा प्रभावशाली बना दिया है। लताजी की आवाज़ एक कर्तव्य-परायन भारतीय नारी के रूप को साकार करती है। और भारतीय नारी का यही रूप प्रस्तुत गीत में भी कूट कूट कर भरा हुआ है। फ़िल्म 'ख़ानदान' का यह गीत है "तुम ही मेरे मंदिर तुम ही मेरी पूजा तुम ही देवता हो"। यूँ तो १९६५ की इस फ़िल्म में मुमताज़, सूदेश कुमार, और प्राण भी थे, लेकिन वरिष्ठ जोड़ी के रूप में सुनिल दत्त और नूतन नज़र आये और यह गीत भी इन दोनो पर ही फ़िल्माया गया है। भारतीय संस्कृति मे पत्नी के लिए पति का रूप परमेश्वर का रूप होता है। आज के समाज में यह कितना सार्थक है इस बहस में हम पड़ना नहीं चाहते, लेकिन इस गीत का भाव कुछ इसी तरह का है। पत्नी की श्रद्धा और प्रेम की मिठास गीत क

सुन मेरे बन्धू रे, सुन मेरे मितवा....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 31 कि सी सुदूर अनजाने गाँव की धरती से गुज़रती हुई नदी, उसकी कलकल करती धारा, दूर दिखाई देती है एक नाव, और कानो में गूंजने लगते हैं उस नाव पर बैठे किसी मांझी के सुर. अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए वो अपनी ही धुन में गाता चला जाता है. दोस्तों, शहरों में अपने 'कॉंक्रीट' के 'अपार्टमेंट' में रहकर शायद हम ऐसे दृश्य का नज़ारा ना कर सके, लेकिन एक गीत ऐसा है जिसे सुनकर आप उसी नज़ारे को ज़रूर महसूस कर पाएँगे, वही नदी, वही नाव और उसी मांझी की तस्वीर आपकी आँखों के सामने आ जाएँगे, यह हमारा विश्वास है. और वही गीत लेकर आज हम हाज़िर हुए हैं 'ओल्ड इस गोल्ड' की इस महफ़िल में. भटियाली संगीत, यानी कि बंगाल के नाविकों का संगीत. नाव चलाते वक़्त वो जिस अंदाज़ में और सुर में गाते हैं उसी को भटियाली संगीत कहा जाता है. और बंगाल के लोक संगीत के इसी अंदाज़ में सचिन देव बर्मन ने इस क़दर महारत हासिल की है कि उनकी आवाज़ में इस तरह का गीत जैसे जीवंत कर देता है उसी मांझी को हमारी आँखों के सामने. 1959 में फिल्म "सुजाता" में बर्मन दादा ने ऐसा ही एक गीत गाया था.

अरे दिल है तेरे पंजे में तो क्या हुआ....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 02 ओल्ड इस गोल्ड आवाज़ का एक ऐसा स्तम्भ है जिसमें हम आपको फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर से चुनकर एक लोकप्रिय गीत सुनवाते हैं और साथ ही साथ उस गीत की चर्चा भी करते हैं उपलब्ध तथ्यों के आधार पर. आज हमने इस स्तम्भ के लिए जिस गीत को चुना है उस गीत को सुनकर न केवल आप मुस्कुरायेंगें बल्कि आपके कदम थिरकने भी लगेंगे. १९५८ में एक फ़िल्म आई थी-"दिल्ली का ठग" और इस फ़िल्म में मुख्य भूमिकाओं में थे किशोर कुमार और नूतन. इस फ़िल्म में किशोर कुमार और आशा भोंसले का गाया एक ऐसा गीत है जो अपने आप में एक ही है, और ऐसा गीत फ़िर उसके बाद कभी नही बन पाया. जब किशोर दा के सामने हास्य गीत गाने की बारी आती है, तो जैसे उनका अंदाज़ ही बदल जाता है. संगीतकार चाहे जैसी भी धुन बनाये, किशोर दा उस पर अपने अंदाज़ की ऐसी छाप छोड़ देते हैं की वो गीत सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्ही का बन कर रह जाता है. ऐसा ही है ये गीत भी जिसे आज हम आपको सुनवाने जा रहे हैं. फ़िल्म की सिचुअशन ये है कि नूतन, किशोर कुमार को अंग्रेजी की "वोक्युबलरी" सिखा रही हैं. इस सिचुअशन पर जब गीत बनाने का सोचा गया तब तब गीत