ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 399/2010/99 कु छ आवाज़ें ऐसी होती हैं जिनमें इस मिट्टी की महक मौजूद होती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसी आवाज़ें इस मिट्टी से जुड़ी हुई लगती है, जिन्हे सुनते हुए हम जैसे किसी सुदूर गाँव की तरफ़ चल देते हैं और वहाँ का नज़ारा आँखों के सामने तैरने लगता है। जैसे दूर किसी पनघट से पानी भर कर सखी सहेलियाँ कतार बना कर चली आ रही हों गाँव की पगडंडियों पर। आज हमने जिस गीत को चुना है उसे सुनते हुए शायद आपके ज़हन में भी कुछ इसी तरह के ख्यालात उमड़ पड़े। जी हाँ, 'सखी सहेली' शृंखला की आज की कड़ी में प्रस्तुत है मिनू पुरुषोत्तम और परवीन सुल्ताना की आवाज़ों में फ़िल्म 'दो बूंद पानी' का एक बड़ा ही प्यारा गीत "पीतल की मेरी गागरी"। इसमें वैसे मिनू जी और परवीन जी के साथ साथ उनकी सखी सहेलियों की भी आवाज़ें मौजूद हैं, लेकिन मुख्य आवाज़ें इन दो गायिकाओं की ही हैं। संगीतकार जयदेव की इस रचना में इस देश की मिट्टी का सुरीलापन कूट कूट कर समाया हुआ है। लोक गीत के अंदाज़ में बना यह गीत कैफ़ी आज़मी साहब के कलम से निकला था। आपको याद होगा कि सन् १९७१ में ख़्वाजा अहम