सुर्खियों से बुनती है मकड़ी की जाली रे.. "नो वन किल्ड जेसिका" के संगीत की कमान संभाली अमित-अमिताभ ने
सुजॉय जी की अनुपस्थिति में एक बार फिर ताज़ा-सुर-ताल की बागडोर संभालने हम आ पहुँचे हैं। जैसा कि मैंने दो हफ़्ते पहले कहा था कि गानों की समीक्षा कभी मैं करूँगा तो कभी सजीव जी। मुझे "बैंड बाजा बारात" के गाने पसंद आए थे तो मैंने उनकी समीक्षा कर दी, वहीं सजीव जी को "तीस मार खां" ने अपने माया-जाल में फांस लिया तो सजीव जी उधर हो लिए। अब प्रश्न था कि इस बार किस फिल्म के गानों को अपने श्रोताओं को सुनाया जाए और ये सुनने-सुनाने का जिम्मा किसे सौंपा जाए। अच्छी बात थी कि मेरी और सजीव जी.. दोनों की राय एक हीं फिल्म के बारे में बनी और सजीव जी ने "बैटन" मुझे थमा दिया। वैसे भी क्रम के हिसाब से बारी मेरी हीं थी और "मन" के हिसाब से मैं हीं इस पर लिखना चाहता था। अब जहाँ "देव-डी" और "उड़ान" की संगीतकार-गीतकार-जोड़ी मैदान में हो, तो उन्हें निहारने और उनका सान्निध्य पाने की किसकी लालसा न होगी। आज के दौर में "अमित त्रिवेदी" एक ऐसा नाम, एक ऐसा ब्रांड बन चुके हैं, जिन्हें परिचय की कोई आवश्यकता नहीं। अगर यह कहा जाए कि इनकी सफ़लता का दर (सक्सेस