प्लेबैक वाणी -29 -संगीत समीक्षा - मटरू की बिजली का मंडोला कहने की जरुरत नहीं कि जब भी गुलज़ार और विशाल एक साथ आते हैं, संगीत प्रेमियों की तो लॉटरी सी लग जाती है. इस बार ये साथ आये हैं “ मटरू की बिजली का मंडोला ’ लेकर. अब जब नाम ही इतना अनूठा हो तो संगीत से उम्मीद क्यों न हों, तो चलिए देखते हैं ‘ माचिस ’ से ‘ सात खून माफ ’ तक लगातार उत्कृष्ट संगीत देने वाली इस जोड़ी की पोटली में अब नया क्या है... एल्बम खुलता है शीर्षक गीत से, जिसके साथ एक लंबे समय बाद गायक सुखविंदर की वापसी हुई है. संगीत संयोजक रंजीत बारोट ने भी उनका साथ दिया है, पर ये गीत पूरी तरह सुखविंदर का ही है. रिदम जबरदस्त है और धुन इतनी सरल है कि सुनते ही जेहन में बस जाता है. गुलज़ार ऐसे गीतों में भी अपने शब्दों को खास अंदाज़ से पेश करने में माहिर हैं. गीत ‘ मास ’ और ‘ क्लास ’ दोनों को प्रभावित करने में सक्षम है. अगला गीत ‘ खामखाँ ’ यूँ तो एक प्रेम गीत है. जिसकी धुन बेहद मधुर है. संगीत संयोजन सरल और सुरीला है और विशाल की आवाज़ गीत पर पूरी तरह से दुरुस्त भी. कोई और संगीतकार होते तो शायद इस गीत