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भैरवी दादरा : SWARGOSHTHI – 335 : BHAIRAVI DADARA

स्वरगोष्ठी – 335 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी - 2 : भैरवी दादरा उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का गाया दादरा जब मन्ना डे ने दुहराया- “बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...” उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ मन्ना डे ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप...

राग ललित और बसन्त में खयाल : SWARGOSHTHI – 207 : KHAYAL RECITAL

स्वरगोष्ठी – 207 में आज भारतीय संगीत शैलियों का परिचय : 5 : खयाल राग ललित और बसन्त में आलाप, विलम्बित और द्रुत खयाल ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ की पाँचवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पाठकों और श्रोताओं के अनुरोध पर आरम्भ की गई इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत हम भारतीय संगीत की उन परम्परागत शैलियों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे बीच उपस्थित हैं। भारतीय संगीत की एक समृद्ध परम्परा है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक इस संगीत-धारा में अनेकानेक धाराओं का संयोग हुआ। इनमें से जो भारतीय संगीत के मौलिक सिद्धांतों के अनुकूल धारा थी उसे स्वीकृति मिली और वह आज भी एक संगीत शैली के रूप स्थापित है और उनका उत्तरोत्तर विकास भी हुआ। विपरीत धाराएँ स्वतः नष्ट भी हो गईं। पिछली चार कड़ियों में हमने भारतीय संगीत की सबसे प्राचीन और वर्तमान में उपलब्ध संगीत शैली ‘ध्रुपद’ शैली का सोदाहरण परिचय प्रस्तुत किया था। आज के अंक स...

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ३

स्वरगोष्ठी – ९२ में आज  मन्ना डे ने गाया उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का दादरा ‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’   ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम कुछ ऐसी ठुमरियों पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें स्वयं मूल गायक-गायिका ने अथवा किसी फिल्मी पार्श्वगायक-गायिका ने फिल्म में भी गाया है। पिछले दो अंकों में हमने आपसे क्रमशः उस्ताद अब्दुल करीम खाँ और बेगम अख्तर की गायी ठुमरियों के फिल्मी प्रयोग पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम ‘आफ़ताब-ए-मौसिकी’ के खिताब से नवाज़े गए उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ के व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे। साथ ही उनके गाये एक दादरा- “बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...” और उसके फिल्मी प्रयोग का भी उल्लेख करेंगे। उ न्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक से लेकर पिछली शताब्दी के मध्यकाल तक के जिन संगीतज्ञों की गणना हम शिखर-पुरुष के रूप में करते हैं, उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ उन्ही में से एक थे। ध्रुवपद-धमार, खयाल-तराना, ठुमर...

मौसिकी अर्श के आफताब : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ

सुर संगम- 42 – उन्हे मैसूर दरबार से “आफताब-ए-मौसिकी” (संगीत के सूर्य) की उपाधि से नवाजा गया भारतीय संगीत के प्रचलित घरानों में जब भी आगरा घराने की चर्चा होगी तत्काल एक नाम जो हमारे सामने आता है, वह है- आफताब-ए-मौसिकी उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ। ‘सुर संगम’ के आज के अंक में हम इन्हीं महान गायक कलासाधक को श्रद्धा-सुमन अर्पित करेंगे। पिछली शताब्दी के पूर्वार्द्ध के जिन संगीतज्ञों की गणना हम शिखर-पुरुष के रूप में करते हैं उस्ताद फ़ैयाज़ खान उन्ही में से एक थे। ध्रुवपद-धमार, खयाल-तराना, ठुमरी-दादरा, सभी शैलियों की गायकी पर उन्हें कुशलता प्राप्त थी। प्रकृति ने उन्हें घन, मन्द्र और गम्भीर कण्ठ का उपहार तो दिया ही था, उनके शहद से मधुर स्वर श्रोताओं पर रस-वर्षा कर देते थे। फ़ैयाज़ खाँ का जन्म ‘आगरा रँगीले घराना’ के नाम से विख्यात ध्रुवपद गायकों के परिवार में हुआ था। दुर्भाग्य से फ़ैयाज़ खाँ के जन्म से लगभग तीन मास पूर्व ही उनके पिता सफदर हुसैन खाँ का इन्तकाल हो गया। जन्म से ही पितृ-विहीन बालक को उनके नाना ग़ुलाम अब्बास खाँ ने अपना दत्तक पुत्र बनाया और पालन-पोषण के साथ-साथ संगीत-शिक्षा की व्यवस्था भी की।...