अल्लाह भी है मल्लाह भी....लता के स्वरों में समायी है सारी खुदाई ..साथ में सलाम है अनिल बिश्वास दा को भी
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 220 ल ता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद पुराने, भूले बिसरे, और दुर्लभ नग़मों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस ख़ास शृंखला 'मेरी आवाज़ ही पहचान है' की अंतिम कड़ी में। पिछले नौ दिनों आप ने नौ अलग अलग संगीतकारों की धुनों पर लता जी की सुरीली आवाज़ सुनी, आज जिस संगीतकार की रचना हम पेश करने जा रहे हैं वो एक ऐसे संगीतकार हैं जिन्हे फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के संगीतकारों का भीष्म पितामह कहा जाता है। आप हैं अनिल बिस्वास (विश्वास)। एक बार जब उन्हे किसी ने फ़िल्मी संगीतकारों का भीष्म पितामह कह कर संबोधित किया तो उन्होने उसे सुधारते हुए कहा था कि 'R.C. Boral is the father of film music directors, I am only the uncle'| यह सच ज़रूर है कि न्यु थियटर्स के आर. सी. बोराल, तिमिर बरन, पंकज मल्लिक, के. सी. डे जैसे संगीतकारों ने फ़िल्मों में सुगम संगीत की नींव रखी, लेकिन जब सुनहरे युग की बात चलती है तो उसमें अनिल बिस्वास का ही नाम सब से पहले ज़हन में आता है। ख़ैर, इस पर हम फिर कभी बहस करेंगे, आज ज़िक्र लता जी और अनिल दा का। अनिल दा उन संगीतकारों में से हैं जिन्होने लता