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स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 6

भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा-निर्माण के शताब्दी वर्ष में आयोजित हमारे इस विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नए अंक में आपका स्वागत है। विगत एक सौ वर्षों में भारतीय जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला और सर्वसुलभ कोई माध्यम रहा है तो वह है, सिनेमा। 3मई, 1913 को मूक सिनेमा से आरम्भ इस यात्रा का पहला पड़ाव 1931 में आया, जब हमारा सिनेमा सवाक हुआ। इस स्तम्भ में हम आपसे मूक और सवाक युग के कुछ विस्मृत ऐतिहासिक क्षणों को साझा कर रहे हैं। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले पि छले अंकों में हम आपसे यह चर्चा कर चुके हैं कि 3मई, 1913 को विदेशी उपकरणों की सहायता से किन्तु भारतीय कथानक पर भारतीय कलाकारों द्वारा पहले कथा-चलचित्र ‘राजा हरिश्चन्द्र’ का निर्माण और प्रदर्शन हुआ था। इस पहली मूक फिल्म का प्रदर्शन 1913 में हुआ था, किन्तु इस सुअवसर के लिए भारतीयों ने 1896 से ही प्रयास करना शुरू कर दिया था। पिछले अंक में हमने ऐसे ही कुछ प्रयासों की चर्चा की थी। आज ऐसे कुछ और प्रयासों की हम चर्चा करेंगे। वर्ष 1900 में मुम्बई के एक विद्युत इंजीनियर एफ.बी. थानावाला ने एक वृत्तचित्र ‘स