आवारा हैं गलियों में मैं और मेरी तन्हाई .. अली सरदार जाफ़री के दिल का गुबार फूटा जगजीत सिंह के सामने
महफ़िल-ए-ग़ज़ल #९५ "शा यर न तो कुल्हाड़ी की तरह पेड़ काट सकता है और न इन्सानी हाथों की तरह मिट्टी से प्याले बना सकता है। वह पत्थर से बुत नहीं तराशता, बल्कि जज़्बात और अहसासात की नई-नई तस्वीरें बनाता है। वह पहले इन्सान के जज़्बात पर असर-अंदाज़ होता है और इस तरह उसमें दाख़ली (अंतरंग) तबदीली पैदा करता है और फिर उस इन्सान के ज़रिये से माहौल (वातावरण) और समाज को तबदील करता है।" शायर की परिभाषा देती हुई ये पंक्तियाँ उन शायर की हैं, जिनकी पिछले १ अगस्त को पुण्यतिथि थी। जी हाँ, इस १ अगस्त को उनको सुपूर्द-ए-खाक हुए पूरे १० साल हो गए। २९ नवंबर १९१३ को जन्मे "सरदार" ७७ साल की उम्र में इस जहां-ए-फ़ानी से रूखसत हुए। मैं ये तो नहीं कह सकता कि आज की महफ़िल सजाने से पहले मुझे इस बात की जानकारी थी, लेकिन कहते हैं ना कि कुछ बातें बिन जाने हीं सही हो जाती हैं। तो ये देखिए. हमें यह सौभाग्य हासिल हो गया कि हम अपनी महफ़िल के माध्यम से इस महान शायर को श्रद्धंजलि अर्पित कर सकें। सरदार यानि कि अली सरदार जाफ़री.. हमने इनका ज़िक्र पिछली कई सारी महफ़िलों में किया है। दर-असल हमारी पिछली ४-५ महफ