यह सच है कि कई अन्य संगीतकारों नें भी देव आनन्द के साथ काम किया जैसे कि शंकर जयकिशन, सलिल चौधरी, मदन मोहन, कल्याणजी-आनन्दजी,राहुल देव बर्मन, बप्पी लाहिड़ी और राजेश रोशन, लेकिन सचिन दा के साथ जिन जिन फ़िल्मों में उन्होंने काम किया, उनके गीत कुछ अलग ही बने। आज न बर्मन दादा हमारे बीच हैं और अब देव साहब भी बहुत दूर निकल गए, पर इन दोनों नें साथ-साथ जो क़दमों के निशां छोड़ गए हैं, वो आनेवाली तमाम पीढ़ियों के लिए किसी पाठशाला से कम नहीं।ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 71
देव आनन्द और सचिन देव बर्मन के सुरीले सफ़र का संक्षिप्त लेखा-जोखा
"जीवन के सफ़र में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को, और दे जाती हैं यादें तन्हाई में तड़पाने को", जब पिछले रविवार देव आनन्द साहब के मृत्यु का समाचार मिला तो सबसे पहले मुझे फ़िल्म 'मुनीमजी' का यही गीत एकदम से याद आ गया। पर देव साहब एक ऐसे अभिनेता और शख़्स रहे जिन्हें ऐसे उदासी भरे गीतों से नहीं बल्कि उनके ज़िन्दगी से भरपूर गीतों से याद किये जाने चाहिए। शायद यही वजह है कि अगले ही पल मुझे देव साहब का 'हम दोनों' फ़िल्म का वह गीत याद आ गया, "मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया"। और यही गीत देव साहब की शख्सियत को बिल्कुल सही तरीक़े से दर्शाता है, कम से कम उनके चाहने वालों को तो ऐसा ही महसूस होता है। एक और बात शायद आपने भी ग़ौर की होगी कि देव साहब की फ़िल्मों के गानें हमेशा सुपर-डुपर हिट रहे हैं। वैसे तो उनके ६० और ७० के दशकों की अधिकतर फ़िल्में ही सफल रही हैं, फिर भी हम यह कह सकते हैं कि चाहे उनकी फ़िल्में चली हों या न चली हों, उनके फ़िल्मों के गानें हमेशा सर चढ़ कर बोलते रहे हैं, और आज वो सब गीत सदाबहार नग़मों की फ़ेहरिस्त में दर्ज हैं।
आइए देव आनन्द के फ़िल्मों के गीतों पर ज़रा क़रीब से नज़र डाली जाए। एक बार स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर नें देव साहब के बारे में यह कहा था कि उनके गीतों में एक हौण्टिंग् अपील होती है और जो सुनने वाले को तुरन्त अपने से जोड़ लेता है। लता जी नें यह भी कहा कि देव साहब को रिदम और सुर का बहुत अच्छा ज्ञान है, और भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी अच्छी ख़ासी जानकारी रखते हैं। फ़िल्म 'गाइड' में लता जी के गाए शास्त्रीय संगीत आधारित गीत शायद इसी बात का प्रमाण है। वैसे तो किसी भी फ़िल्म के गीत-संगीत के लिए गीतकार, संगीतकार और गायक को ही श्रेय दिया जाता है, पर जिस फ़िल्मकार के लगभग सभी फ़िल्मों के गीत हिट रहे हों, तो यकीनन उनका भी कुछ तो योगदान उसमें ज़रूर होगा। राज कपूर और यश चोपड़ा की तरह देव आनन्द भी ऐसे ही एक फ़िल्मकार थे जिन्हें संगीत की अच्छी समझ थी।
'गाइड' फ़िल्म न केवल देव आनन्द के करीयर का एक मील का पत्थर साबित हुआ बल्कि फ़िल्म के संगीतकार सचिन देव बर्मन के लिए भी उतना ही लाभदायक। देव साहब और सचिन दा की फ़िल्मकार-संगीतकार जोड़ी हिन्दी सिनेमा के संगीत के लिए हमेशा ही हिट सिद्ध हुई है. देव आनन्द फ़िल्मों में आए थे ४० के दशक के अन्तिम चरण में। उस ज़माने में मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचन्द प्रकाश, अनिल बिस्वास, सी. रामचन्द्र, हुस्नलाल-भगतराम, नौशाद, और कुछ हद तक शंकर-जयकिशन भी नाम कमा रहे थे। सचिन देव बर्मन नें कुछ फ़िल्मों में संगीत ज़रूर दिया था पर उतनी कामयाबी नहीं मिली थी। बर्मन दादा निराश होकर वापस बंगाल चले जाना चाहते थे, तभी १९४९ में चेतन आनद और भाई देव आनन्द नें मिलकर अपना बैनर 'नवकेतन' शुरु किया और पहली फ़िल्म लेकर आए 'अफ़सर'। इस फ़िल्म से 'नवकेतन' और सचिन देव बर्मन का एक लम्बा साथ शुरु हुआ, और इस फ़िल्म के गानें ("मनमोर हुआ मतवाला", "नैना दीवाने एक नहीं माने") इतने पसन्द किए गए कि बर्मन दादा हमेशा के लिए बम्बई के होकर रह गए। १९४९ में 'अफ़सर' और १९५० में 'मशाल' के बाद १९५१ में उनके संगीत से सजी फ़िल्में आईं 'बहार', 'बुज़दिल', 'एक नज़र', 'नौजवान', 'सज़ा' और 'बाज़ी' - हर फ़िल्म सुपरहिट, हर फ़िल्म का संगीत सदाबहार। इनमें 'बाज़ी' नवकेतन की फ़िल्म थी जिसमें निर्देशन का भार दिया गया गुरु दत्त को। 'बाज़ी' में गीता दत्त के गाए गीतों नें उन्हें रातों रात धूम मचा दी। 'बाज़ी' के सेट पर दो प्रेम कहानियाँ पनपी - एक गुरु दत्त और गीता रॉय के बीच, और दूसरी देव आनन्द और कल्पना कार्तिक के बीच।
बर्मन दादा देव आनन्द को बहुत प्यार करते और देव साहब भी दादा को 'नवकेतन' का एक महत्वपूर्ण व मज़बूत स्तंभ मानते थे। 'गाइड' के निर्माण के दौरान जब बर्मन दादा बीमार पड़ गए थे और दादा नें देव साहब को अन्य संगीतकार नियुक्त करने की सलाह दी, तब देव साहब नें प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा कि मैं तब तक इन्तज़ार करूंगा जब तक आप ठीक नहीं हो जाते। देव आनन्द और विजय आनन्द, जिन्होंने नवकेतन के ज़्यादातर मशहूर फ़िल्मों का निर्देशन किया है, किसी भी गीत के निर्माण में पूरी तरह से डूब जाया करते थे। विजय आनन्द नें कई वर्ष पूर्व एक साक्षात्कार में कहा था कि हम सब, मजरूह साहब, शैलेन्द्र या नीरज, और दादा बर्मन, घण्टों बैठ कर किसी बोल या ट्युन पर काम किया करते। 'गाइड' के गीतों को दो हफ़्तों से ज्यादा रिहर्स करने के बाद ही हम रेकॉर्डिंग् स्टुडियो गए थे।
देव आनन्द और सचिन देव बर्मन की जोड़ी के चर्चित फ़िल्मों की फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है, पर दशकवार विभाजित करने पर जो फ़िल्में एकदम से याद आती हैं वो हैं ५० के दशक के 'बाज़ी', 'जाल', 'टक्सी ड्राइवर', 'मुनीमजी', 'हाउस नम्बर ४४', 'फ़न्टूश', 'पेयिंग् गेस्ट', 'नौ दो ग्यारह', 'सोलवा साल', 'कालापानी', 'काला बाज़ार' और 'बम्बई का बाबू'; ६० के दशक में 'बात एक रात की', 'तेरे घर के सामने', 'तीन देवियाँ', 'गाइड', 'ज्वेल थीफ़', 'प्रेम पुजारी'; और ७० के दशक में 'गैम्ब्लर', 'तेरे मेरे सपने', 'ये गुलिस्ताँ हमारा' और 'छुपा रुस्तम'। इन तमाम लाजवाब फ़िल्मों में कभी मोहम्मद रफ़ी तो कभी किशोर कुमार और कभी कभी हेमन्त कुमार नें देव साहब का प्लेबैक दिया। रफ़ी हो या किशोर, देव साहब हर गीत में अपना जादू चलाते थे। उनके मैनरिज़्म, उनकी अदाएँ, उनका स्टाइल ही कुछ ऐसा था कि कम्पोज़र और गायक उन्हीं को ध्यान में रख के गीत गाया करते। रफ़ी नें अगर "खोया खोया चाँद", "देखो पंछी अकेला है", "एक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने", "मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया", "मेरा मन तेरा प्यासा" जैसे गीत गाये हैं तो किशोर के गाये "ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त", "फूलों के रंग से", "जीवन के सफ़र में राही", "माना जनाब नें पुकारा नहीं", "ये दिल न होता बेचारा", "दिल आज शायर है" जैसे गीतों को भी देव साहब के अभिनय नें क्या ख़ूब अंजाम दिया है। केवल एकल गीतों में ही नहीं, कई डुएट्स में भी देव साहब के जलवे बरकरार रहे जैसे कि "अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ ना", "आँखों में क्या जी रुपहला बादल", "अरे यार मेरी तुम भी हो ग़ज़ब", "शोख़ियों में घोला जाए फूलों का शबाब", "आसमाँ के नीचे हम आज अपने पीछे", "हे मैंने क़सम ली", "चूड़ी नहीं मेरा दिल है", "छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा"।
देव आनन्द और सचिन देव बर्मन सिक्के के दो पहलु जैसे थे, हर पहलु का अपना महत्व है, अपनी अलग जगह है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देव साहब और बर्मन दादा एक दूसरे के बिना अधूरे रहे होते, अगर उनका साथ न हुआ होता तो। यह सच है कि कई अन्य संगीतकारों नें भी देव आनन्द के साथ काम किया जैसे कि शंकर जयकिशन, सलिल चौधरी, मदन मोहन, कल्याणजी-आनन्दजी, राहुल देव बर्मन, बप्पी लाहिड़ी और राजेश रोशन, लेकिन सचिन दा के साथ जिन जिन फ़िल्मों में उन्होंने काम किया, उनके गीत कुछ अलग ही बने। आज न बर्मन दादा हमारे बीच हैं और अब देव साहब भी बहुत दूर निकल गए, पर इन दोनों नें साथ-साथ जो क़दमों के निशां छोड़ गए हैं, वो आनेवाली तमाम पीढ़ियों के लिए किसी पाठशाला से कम नहीं। इन दो लाजवाब कलाकारों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मैं, सुजॉय चटर्जी, आज के इस 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' से अनुमति ले रहा हूँ, इस शोधालेख के बारे में अपनी राय टिप्पणी में ज़रूर दें, नमस्कार!
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