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बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की.. नारी-मन में मचलते दर्द को दिल से उभारा है परवीन और मेहदी हसन ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #९२ "ना री-मन की व्यथा को अपनी मर्मस्पर्शी शैली के माध्यम से अभिव्यक्त करने वाली पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर उर्दू-काव्य की अमूल्य निधि हैं।" - यह कहना है सुरेश कुमार का, जिन्होंने "परवीन शाकिर" पर "खुली आँखों में सपना" नाम की पुस्तक लिखी है। सुरेश कुमार आगे लिखते हैं: बीसवीं सदी के आठवें दशक में प्रकाशित परवीन शाकिर के मजमुआ-ए-कलाम ‘खुशबू’ की खुशबू पाकिस्तान की सरहदों को पार करती हुई, न सिर्फ़ भारत पहुँची, बल्कि दुनिया भर के उर्दू-हिन्दी काव्य-प्रेमियों के मन-मस्तिष्क को सुगंधित कर गयी। सरस्वती की इस बेटी को भारतीय काव्य-प्रेमियों ने सर-आँखों पर बिठाया। उसकी शायरी में भारतीय परिवेश और संस्कृति की खुशबू को महसूस किया: ये हवा कैसे उड़ा ले गयी आँचल मेरा यूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी परवीन शाकिर की शायरी, खुशबू के सफ़र की शायरी है। प्रेम की उत्कट चाह में भटकती हुई, वह तमाम नाकामियों से गुज़रती है, फिर भी जीवन के प्रति उसकी आस्था समाप्त नहीं होती। जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए, वह अपने धैर्य का परीक्षण भी करती है। कमाल-ए-ज