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शब्दों में संसार - कवि और कविता

शब्दों में संसार - एपिसोड 02 - कवि और कविता   कवि , कुछ ऐसी तान सुनाओ , जिससे उथल-पुथल मच जाए , एक हिलोर इधर से आए , एक हिलोर उधर से आए , चकनाचूर करो जग को , गूँजे ब्रह्मांड नाश के स्वर से , रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है निकली मेरे अंतरतर से! नाश! नाश!! हा महानाश!!! की प्रलयंकारी आँख खुल जाए , कवि , कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए। " विप्लव गान" करता यह कवि अपने दौर और आने वाले हर दौर के कवि को अंदर छुपी हिम्मत से वाकिफ करा रहा है। वह कह रहा है कि वक़्त ऐसे समय का आ चुका है जब शब्दों से ब्रह्मांड चूर-चूर करने होंगे , जब तानों में क्रोध जगाना होगा। कवि महानाश का आह्वान कर रहा है ताकि उस "प्रलयंकर" की तीसरी आँख खुल जाए और चहुं ओर उथल-पुथल मच जाए। कवि अपने शब्दों से क्रांति को जगा रहा है।  शब्दों में संसार की इस दूसरी कड़ी में आज विश्व दीपक लाये हैं, कवि की कविता और उसकी स्वयं की जिंदगी से जुड़े कुछ सवाल. इस अनूठी स्क्रिप्ट को आवाज़ से सजा रहे हैं अनुराग शर्मा और संज्ञा टंडन. आज की कड़ी में आप सुनेगें हरिवंश राय बच्चन, रघुवीर सहाय, अज्ञय,

शब्दों में संसार - हरा सोना

शब्दों में संसार - एपिसोड ०१ - हरा सोना  शब्दों में संसार की पहली कड़ी में आप सबका स्वागत है। यह श्रॄंखला "शब्दों के चाक पे" की तरह हीं "कविताओं" पर आधारित है। बस फर्क यह है कि जहाँ "चाक" पर हम आजकल की ताज़ातरीन कविताओं की मिट्टी डालते थे , वहीं "संसार" में हम उन कविताओं को खोदकर ला रहे हैं जो मिट्टी तले कई सालों से दबी हैं यानि कि श्रेष्ठ एवं नामी कवियों की पुरानी कविताएँ। आज की कड़ी में हमने "निराला" , " पंत" से लेकर "त्रिलोचन" एवं "नागार्जुन" तक की कविताएँ शामिल की हैं और आज का विषय है "हरा सोना"। "हरा सोना" नाम से हीं साफ हो जाता है कि हम खेतों में लहलहाते फसलों एवं जंगलों में शान से सीना ताने खड़े पेड़ों की बातें कर रहे हैं। हम प्रकृति यानि कि कुदरत की बातें कर रहे हैं।   लीजिए सुनिए रेडियो प्लेबैक का ये अनूठा पोडकास्ट - आप इस पूरे पोडकास्ट को यहाँ से डाउनलोड भी कर सकते हैं आज की कड़ी में प्रस्तुत कवितायें और उनसे जुडी जानकारी इस प्रक