भोपाल शहर की एक अलसाई सी दोपहर, एक सूनी गली का आखिरी मकान जहाँ जमा हैं "मार्तण्डया" संगीत समूह के सभी संगीत सदस्य. फिज़ा में विरक्ति के स्वर हैं, जैसे सब देखा जा चुका है, अनुभव किया जा चुका है महसूस किया जा चुका है हुस्न और इश्क जैसी सब बातों का खोखलापन, अब कहाँ दिल लगायें. मन बैरागी चाहता है कि कहीं दूर जंगल में डेरा डाला जाए और दरवेशों में बसर किया जाए. कुछ ऐसे ही भाव लिए है वर्तमान सत्र का ये २० वां गीत. संजय द्विवेदी ने लिखा है इसे और स्वरबद्ध किया है चेतैन्य भट्ट और कृष्णा पंडित ने. आवाजें हैं कृष्णा पंडित, रुद्र प्रताप और अभिषेक की. टीम के गिटारिस्ट हैं सागर और रिदम संभाला है हेमंत ने. सुनते हैं इस उभरते हुए जबरदस्त सूफी संगीत समूह का ये नया दमदार गीत. अपनी बेशकीमती राय देकर इन नए संगीत योद्धाओं का मार्गदर्शन अवश्य करें. गीत को सुनने के लिए नीचे के प्लेयर पर क्लिक करें - After the success of their first song "sooraj chand aur sitare" with us, this new upcoming sufi band from bhopal "martandya" is back again, with a completely different flavored song -