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'गीतांजलि' ने मानव मन में एक स्निग्ध, स्नेहिल स्पर्श दिया - माधवी बंद्योपाध्याय

सुर संगम - 35 -रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सार्द्धशती वर्ष-२०११ पर श्रद्धांजलि (तीसरा भाग) बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से कृष्णमोहन मिश्र की रवीन्द्र साहित्य और उसके हिन्दी अनुवाद विषयक चर्चा पहले पढ़ें पहला भाग दूसरा भाग स भी संगीत-प्रेमियों का ‘सुर संगम’ के आज के अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। आपको स्मरण ही है कि इन दिनों हम कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के १५०वें जयन्ती वर्ष में रवीन्द्र-साहित्य की विदुषी माधवी बंद्योपाध्याय से बातचीत कर रहे हैं। माधवी जी ने रवीद्रनाथ के अनेक गद्य और पद्य साहित्य का हिन्दी अनुवाद किया है। यह सभी अनुवाद सदा साहित्य जगत में चर्चित रहे। इस वर्ष रवीन्द्रनाथ ठाकुर के सार्द्धशती वर्ष में माधवी जी द्वारा अनूदित रवीन्द्रनाथ ठाकुर की लोकप्रिय कहानियों के संग्रह का प्रकाशन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया है। गद्य साहित्य से अधिक महत्त्वपूर्ण है रवीन्द्रनाथ के गीतों का हिन्दी अनुवाद। माधवी जी द्वारा किये गीतों का अनुवाद केवल शाब्दिक ही नहीं है बल्कि स्वरलिपि के अनुकूल भी है। इस श्रृंखला

वे (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) असाधारण गीतकार तथा संगीतकार थे - माधवी बंद्योपाध्याय

सुर संगम - 33 -रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सार्द्धशती वर्ष-२०११ पर श्रद्धांजलि (पहला भाग) बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से कृष्णमोहन मिश्र की रवीन्द्र साहित्य और उसके हिन्दी अनुवाद विषयक चर्चा न त कर देना शीश को प्रभु, चरण कमल रज के तल में। मेरे अहं को सतत डुबोना, मेरे वचन अश्रु-जल में। ‘सुर संगम’ का आज का अंक हमने कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता के हिन्दी अनुवाद से किया है।‘गीतांजलि’ के इस पद का हिन्दी काव्यानुवाद विदुषी माधवी बंद्योपाध्याय ने किया है। १२ सितम्बर, १९३७ को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में एक प्रवासी बंगाली परिवार में माधवी जी का जन्म हुआ था। पारिवारिक संस्कार और स्वाध्याय से उन्होने बांग्ला भाषा और साहित्य का गहन अध्ययन किया। अँग्रेजी विषय में उन्होने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की। माधवी जी को बाल्यावस्था से कविता, कहानी, निबन्ध आदि लिखने में पर्याप्त रुचि थी। विवाह के उपरान्त पति श्री दिलीप कुमार बनर्जी के सहयोग और प्रोत्साहन से बांग्ला और हिन्दी की मौलिक तथा अनूदित कृतियाँ एक के बाद एक प्रकाशित होती रहीं। अब तक माधवी जी की लगभग डेढ़ दर्जन पुस्