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शब्दों के चाक पर - १९

" दुर्गा की अराधना " और " नदी हूँ, फिर भी प्यासी " पर्वतों से निकली या धरा से फूटी कभी गंगा बन शिव जटा से छूटी मैं जल की धारा ले के बह निकली निस्वार्थ निशचल निर्विकार निर्मल कभी मौन कभी चंचल कहीं बंजर सींचे कहीं पाप धोये सीने पे अपने जाने कितने बांध ढोये दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " दुर्गा की अराधना " और " नदी हूँ, फिर भी प्यासी " है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओं की कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर  शेफाली गुप्ता  ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)  या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें') "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और