सेन्सर बोर्ड की कैंची की धार आज कम ज़रूर हो गई है पर एक ज़माना था जब केवल फ़िल्मी दृश्यों पर ही नहीं बल्कि फ़िल्मी गीतों पर भी कैंची चलती थी। किसी गीत के ज़रिये समाज को कोई ग़लत संदेश न चला जाए, इस तरफ़ पूरा ध्यान रखा जाता था। चोरी, छल-कपट जैसे अनैतिक कार्यों को बढ़ावा देने वाले बोलों पर प्रतिबंध लगता था। फ़िल्म 'छलिया' के शीर्षक गीत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। गायक मुकेश के अनन्य भक्त पंकज मुकेश के सहयोग से आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की १६-वीं कड़ी में इसी गीत की चर्चा... एक गीत सौ कहानियाँ # 16 सम्प्रति "कैरेक्टर ढीला है", "भाग डी के बोस" और "बिट्टू सबकी लेगा" जैसे गीतों को सुन कर ऐसा लग रहा है जैसे सेन्सर बोर्ड ने अपनी आँखों के साथ-साथ अपने कानों पर भी ताला लगा लिया है। यह सच है कि समाज बदल चुका है, ५० साल पहले जिस बात को बुरा माना जाता था, आज वह ग्रहणयोग्य है, फिर भी सेन्सर बोर्ड के नरम रुख़ की वजह से आज न केवल हम अपने परिवार जनों के साथ बैठकर कोई फ़िल्म नहीं देख सकते, बल्कि अब तो आलम ऐसा है कि रेडियो पर फ़िल्मी गानें सुनने में भी शर्म महसू...