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संगीत के आकाश में अपनी चमक फैलाने को आतुर एक और नन्हा सितारा - पी. भाविनी

लगभग ७ वर्ष पूर्व की बात है मैं ग्वालियर में ’उदभव’ संस्था द्वारा आयोजित ’राज्य स्तरीय गायन प्रतियोगिता- सुर ताल’ में निर्णायक के रूप में गया था उस दिन वहाँ राज्य भर से लगभग ३०० प्रतियोगी आए हुए थे, जिसमें ५ साल से लेकर ५० साल तक के गायक गायिकाएं शामिल थे। कुछ प्रतियोगियों के बाद मंच पर एक ७ वर्ष की बच्ची ने प्रवेश किया। मंच पर आने के पश्चात उसने जगजीत सिंह की एक ग़ज़ल गाना प्रारम्भ किया। उसकी उम्र को देखते हुए उसकी गायकी, स्वर, ताल तथा शब्दों का उच्चारण सुन कर हम निर्णायक तथा सभी दर्शक मंत्र मुग्ध हो रहे थे। प्रतियोगिता में स्वयं की पसंद के गीत गाने के पश्चात एक गीत निर्णायकों की पंसद का भी सुनाना था। मैंनें उसके कोन्फिडेन्स को देख कर उसे एक कठिन गीत फ़िल्म ’माचिस’ का लता जी का ’पानी पानी रे भरे पानी रे, नैनों में नीन्दे भर जा’ गाने को कहा। उस बच्ची ने जब यह गीत समाप्त किया तो इस गीत की जो बारीकियाँ थी उस को उस बच्ची ने जिस तरह से निभाया मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसकी प्रशंसा में क्या कहूँ। फ़िर कुछ दो तीन साल बाद एक दिन जीटीवी के कार्यक्रम ’सारेगामापा’ देखते समय उस कार्यक्रम के प्रति

पॉडकास्ट कवि सम्मलेन - अगस्त 2009

इंटरनेटीय कवियों की इंटरनेटीय गोष्ठी रश्मि प्रभा खुश्बू यदि आप पुराने लोगों से बात करें तो वे बतायेंगे कि भारत में एक समय कॉफी हाउसों की चहल-पहल का होता था। कविता-रसज्ञों के घरों पर हो रही कहानियों-कविताओं, गाने-बजाने, बहसों की लघु गोष्ठियों का होता था। जैसे-जैसे तकनीक ने हर किसी को उपभोक्ता बना दिया, हम ग्लोबल गाँव के ऐसे वाशिंदे हो गये जो मोबाइल से अमेरिका के अपने परिचित से तो जुड़ गया, लेकिन अपने इर्द-गिर्द से दूर हो गया। लेकिन वे ही बुजुर्ग एक और बात भी कहते हैं कि हर चीज़ के दो इस्तेमाल होते हैं। चाकू से गर्दन काटिए या सब्जी काटिए, आपके ऊपर है। हमने भी इस तकनीक का सदुपयोग करने के ही संकल्प के साथ पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की नींव रखी थी, ताकि वक़्त की मार झेल रहे कवियों को एक सांझा मंच मिले। जब श्रोता ऑनलाइन हो गया तो कवि क्यों नहीं। इस संकल्पना को मूर्त रूप देने में डॉ॰ मृदुल कीर्ति ने हमारा बहुत सहयोग दिया। हर अंक में नये विचारों ने नये दरवाजे खोले और इस आयोजन की सुगंध चहुँओर फैलने लगी। रश्मि प्रभा के संचालन सम्हालने के बाद हर अंक में नये प्रयोग होने लगे और नये-नये कवियों का इससे जु

लिटिल टेररिस्ट

हिन्दी ब्लॉग पर पहली बार ऑस्कर नामांकित फ़िल्म आवाज़ पर हमने समसामयिक विषयों पर आधारित संगीत विडीयो और लघु फिल्मों को प्रर्दशित करने की नई शुरुआत की है. इस शृंखला में अब तक आप देख चुके हैं डी लैब द्वारा निर्मित आतंकवाद पर बना एक संगीत विडीयो और छायाकार कवि मनुज मेहता की दिल्ली के रेड लाइट इलाके पर बनी संवेदनशील लघु फ़िल्म . जल्दी ही हम नये फिल्मकारों की नई प्रस्तुतियां आपके समक्ष समीक्षा हेतु लेकर हाज़िर होंगे. आज हम जिस लघु फ़िल्म को यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं वह लगभग ३ साल पहले आई थी और कह सकते हैं कि हिंदुस्तान में लघु फिल्मों की एक नई परम्परा की शुरआत इसी फ़िल्म से हुई थी. मात्र १५-१६ मिनट में यह फ़िल्म इतना कुछ कह जाती है जितना कभी-कभी हमारी ३-३.५ घंटे की व्यवसायिक फिल्में नही कह पाती. अगर टीम का हर सदस्य अपने काम में दक्ष हो तो सीमित संसाधनों से भी वो सब हासिल किया जा सकता है जिसे पाने की चाह हर फिल्मकार करता है. इस फ़िल्म का हर पक्ष बेहतरीन है, फ़िर चाहे वो छायांकन हो, या संपादन, पार्श्व संगीत हो या निर्देशन, अदाकारी हो संवाद लेखन, इतने सुंदर अंदाज़ में विषय को परोसा गया है कि देखने

राकेश खंडेलवाल की पुस्तक के विमोचन-समारोह के वीडियो-अंश

साथ में समीरलाल, राकेश खंडेलवाल, रजनी भार्गव, अनूप भार्गव, घनश्याम गुप्ता और डॉ॰ सत्यपाल आनंद का काव्य-पाठ शनिवार ११ अक्टूबर २००८ को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि राकेश खंडेलवाल के कविता संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' का एक साथ तीन जगहों से विमोचन हुआ। पहला तो पुस्तक के प्रकाशक पंकज सुबीर के शहर सीहोर में, दूसरा इसी मंच पर आम श्रोताओं द्वारा और तीसरा वाशिंगटन डीसी में। इस ब्लॉग पर आप विमोचन और काव्य पाठ का आनंद तो ले ही चुके हैं। आज हम लाये हैं, अनूप भार्गव की मदद से तैयार वाशिंगटन समारोह के कुछ वीडियो-अंश। डॉ॰ सत्यपाल आनन्द जी राकेश जी के बारे में अपने विचार रखते हुए पुस्तक का विमोचन करते हुए डॉ॰ सत्यपाल आनंद घनश्याम गुप्ता जी काव्य पाठ घनश्याम गुप्ता जी काव्य पाठ - २ समीर लाल काव्य पाठ डॉ. सत्यपाल आनन्द काव्य पाठ रजनी भार्गव का काव्य-पाठ अनूप भार्गव का काव्य-पाठ 'अंधेरी रात का सूरज' (कविता-संग्रह) के विमोचन समारोह में काव्य पाठ करते राकेश खंडेलवाल यदि आपने अभी तक खुद के हाथों इस कविता-संग्रह का विमोचन नहीं किया तो यहाँ क्लिक करके अवश्य करें।

कहने को हासिल सारा जहाँ था...

दूसरे सत्र के १० वें गीत और उसके विडियो का विश्वव्यापी उदघाटन आज. चलते चलते हम संगीत के इस नए सत्र की दसवीं कड़ी तक पहुँच गए, अब तक के हमारे इस आयोजन को श्रोताओं ने जिस तरह प्यार दिया है, उससे हमारे हौसले निश्चित रूप से बुलंद हुए है. तभी शायद हम इस दसवें गीत के साथ एक नया इतिहास रचने जा रहे हैं, आज ये नया गीत न सिर्फ़ आप सुन पाएंगे, बल्कि देख भी पाएंगे, यानि "खुशमिजाज़ मिट्टी" युग्म का पहला गीत है जो ऑडियो और विडियो दोनों रूपों में आज ओपन हो रहा है. सुबोध साठे की आवाज़ से हमारे, युग्म के श्रोता बखूबी परिचित हैं, लेकिन अब तक उन्होंने दूसरे संगीतकारों, जैसे ऋषि एस और सुभोजित आदि के लिए अपनी आवाज़ दी है, पर हम आपको बता दें, सुबोध ख़ुद भी एक संगीतकार हैं और अपनी वेब साईट पर दो हिन्दी और एक मराठी एल्बम ( बतौर संगीतकार/ गायक ) लॉन्च कर चुके हैं, युग्म के लिए ये उनका पहला स्वरबद्ध गीत है, जाहिर है आवाज़ भी उनकी अपनी है, संगीत संयोजन में उनका साथ निभाया है, पुणे के चैतन्य अड़कर ने. गीतकार हैं युग्म के एक और प्रतिष्टित कवि, गौरव सोलंकी, जिनका अंदाज़ अपने आप में सबसे जुदा है, तो आनंद लें