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बोल रे बोल रे मेरे प्यारे पपीहे बोल रे....गायन में भी खुद को आजमाया महान अभिनेत्री मीना कुमारी ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 633/2010/333 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के श्रोता-पाठकों को हमारा नमस्कार! 'सितारों की सरगम' शृंखला में ट्रैजेडी किंग् दिलीप कुमार के बाद आज बारी है ट्रैजेडी क्वीन के आवाज़ की। जी हाँ, मीना कुमारी, जिन्हें हिंदी सिनेमा का ट्रैजेडी क्वीन कहा जाता है। मीना कुमारी जितनी सशक्त अदाकारा थीं उतनी ही अच्छी शायरा भी थीं। उनकी शायरी का संकलन 'I write, I recite' के शीर्षक से जारी हुआ था, जिसको संगीतबद्ध किया था ख़य्याम साहब नें। विनोद मेहता नें मीना कुमारी की जीवनी लिखी जो प्रकाशित हुई थी सन् १९७२ में। इस किताब में मीना जी की शायराना अंदाज़ उन्होंने कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया था - " Her poetry is sad, joyless, pessimistic, morbid, but then what do you expect from a women of the temperament of Meena Kumari? Her verses were entirely in character with her life, or at least her comprehension of her life. My heroine was not an outstanding poet, nor a detached poet, nor a penetrating poet, nor a classical poet. She was a learning poet who translated her li...

मेरी नींदों में तुम...कहा शमशाद बेगम ने किशोर दा से इस दुर्लभ गीत में...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 77 दो स्तों, कुछ अभिनेता ऐसे होते हैं जिन्हे परदे पर देखते ही जैसे गुदगुदी सी होने लगती है। और कुछ अभिनेत्रियाँ ऐसी हैं जिनका नाम दर्द और संजीदे चरित्रों का पर्याय है। अब अगर ऐसे एक हास्य अभिनेता के साथ ऐसी कोई संजीदे और दर्दीले चरित्र निभानेवाली अभिनेत्री की जोड़ी किसी फ़िल्म में बना दी जाए तो कैसा हो? जी हाँ, किशोर कुमार और मीना कुमारी की जोड़ी भी एक ऐसी ही जोड़ी रही है और ये दोनो साथ साथ नज़र आए थे १९५६ में के. अमरनाथ की फ़िल्म 'नया अंदाज़' में। १९५६ में संगीतकार ओ. पी. नय्यर के संगीत से सजी कुल ८ फ़िल्में आयीं - भागमभाग, सी. आई. डी, छूमंतर, ढाके की मलमल, हम सब चोर हैं, मिस्टर लम्बु, श्रीमती ४२०, और नया अंदाज़। हालाँकी नय्यर साहब और किशोर कुमार का साथ बहुत ज़्यादा नहीं रहा है, बावजूद इसके इन दोनो ने एक साथ कई यादगार फ़िल्में की हैं और तीन फ़िल्में तो इसी साल यानी कि १९५६ में ही आयी थी - भागमभाग, ढाके की मलमल, और नया अंदाज़। इससे पहले इन दोनो ने साथ साथ १९५२ की फ़िल्म 'छम छमा छम' और १९५५ में 'बाप रे बाप' में काम किया था। आज 'ओल्ड इ...

दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दे....रोशन के संगीत में लता की आवाज़ पुरअसर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 63 फ़ि ल्म 'अनोखी रात' का मशहूर गीत "ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में" संगीतकार रोशन के संगीत से सजा आख़री गीत था। रोशन १६ नवंबर १९६७ को इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिये छोड़ गए, लेकिन पीछे छोड़ गए अपनी दिलकश धुनों का एक अनमोल ख़ज़ाना। फ़िल्म 'बहू बेग़म' भी उनके संगीत सफ़र के आख़री फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म भी १९६७ को ही प्रदर्शित हुई थी। एम. सादिक़ निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, मीना कुमारी और प्रदीप कुमार। यह फ़िल्म एक 'पिरियड ड्रामा' है जिसमें पुरुष प्रधान समाज का चित्रण किया गया है, और उन दिनो नारी को किस तरह से दबाया - कुचलाया जाता था उसका भी आभास मिलता है इस फ़िल्म में। मीना कुमारी की सशक्त अभिनय ने इस फ़िल्म को उतना ही यादगार बना दिया है जितना कि इस फ़िल्म के गीत-संगीत ने। आज इसी फ़िल्म का गीत सज रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। लता मंगेशकर की आवाज़ में "दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें, तुमको ना हो ख्याल तो हम क्या जवाब दें" फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने की एक ऐ...

कहाँ हाथ से कुछ छूट गया याद नहीं - मीना कुमारी की याद में

मीना कुमारी ने 'हिन्दी सिनेमा' जगत में जिस मुकाम को हासिल किया वो आज भी अस्पर्शनीय है ।वे जितनी उच्चकोटि की अदाकारा थीं उतनी ही उच्चकोटि की शायरा भी । अपने दिली जज्बात को उन्होंने जिस तरह कलमबंद किया उन्हें पढ़ कर ऐसा लगता है कि मानो कोई नसों में चुपके -चुपके हजारों सुईयाँ चुभो रहा हो. गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी, वह बहुत कम कलमकारों के बूते की बात होती है. गम का ये दामन शायद 'अल्लाह ताला' की वदीयत थी जैसे। तभी तो कहा उन्होंने - कहाँ अब मैं इस गम से घबरा के जाऊँ कि यह ग़म तुम्हारी वदीयत है मुझको पैदा होते ही अब्बा अली बख्श ने रुपये के तंगी और पहले से दो बेटियों के बोझ से घबरा कर इन्हे एक मुस्लिम अनाथ आश्रम में छोड़ आए. अम्मी के काफी रोने -धोने पर वे इन्हे वापस ले आए ।परिवार हो या वैवाहिक जीवन मीना जो को तन्हाईयाँ हीं मिली चाँद तन्हा है,आस्मां तन्हा दिल मिला है कहाँ -कहाँ तन्हां बुझ गई आस, छुप गया तारा थात्थारता रहा धुआं तन्हां जिंदगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तन्हां है और जां तन्हां हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं दोनों चलते रहे यहाँ तन्हां जल...