ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 230 'द स राग दस रंग' शृंखला मे पिछले नौ दिनों में आप ने सुने नौ अलग अलग शास्त्रीय रागों पर आधारित कुछ बेहतरीन फ़िल्मी रचनाएँ। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में हम आप को सम्मोहित करने के लिए लेकर आए हैं राग जनसम्मोहिनी, जिसे शुभ कल्याण भी कहा जाता है। सुविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर आधुनिक काल के ऐसे संगीत साधक हैं जिन्होने ख़ुद कई रागों का विकास किया, नए नए प्रयोग कर नए रागों का इजाद किया। राग जनसम्मोहिनी उन्ही का पुनराविष्कार है। दोस्तों, एक बार ज़ी टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रम 'सा रे गा मा पा' में एक प्रतिभागी ने फ़िल्म 'अनुराधा' का एक गीत गाते वक़्त उसके राग को कलावती बताया था, जिसे सुधारते हुए जज बने ख़ुद पंडित रविशंकर ने बताया कि दरअसल यह राग कलावती नहीं बल्कि जनसम्मोहिनी है। जब पंडित जी ने यह राग बजाया था तब उन्हे मालूम नहीं था कि इसे क्या कहा जाता है। जब इसका उल्लेख कहीं नहीं मिला तो वो इसे अपने नाम पर रवि कल्याण या कुछ और रख सकते थे, जैसे कि तानसेन के नाम पर है मिया की तोड़ी और मिया की मल्हार। पंडित रविशंकर ने और ज़्यादा शोध किया औ...