Skip to main content

Posts

Showing posts with the label hum bekhudi men tumko pukare chale gaye

निराशा में डूबी रफ़ी साहब की बेखुद आवाज़ का नशा

खरा सोना गीत - हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए  प्रस्तोता - अर्शना सिंह  स्क्रिप्ट - सुजॉय चट्टर्जी  प्रस्तुति - संज्ञा टंडन 

हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 26 दो स्तों, गीत केवल वो नहीं जो एक गीतकार लिखे, संगीतकार उसको स्वरबद्ध करे, और गायक उसे संगीतकार के कहे मुताबिक गा दे. अमर गीत वो कहलाता है जब गायक गीतकार के विचारों को खुद महसूस करे, बाकी हर एक चीज़ को भुलाकर, उसमें खुद को पूरी तरह से डूबो दे, और संगीतकार की धुन को अपने जज़्बातों के साथ एक ही रंग में ढाल दे और उसे तह-ए-दिल से पेश करे. गुज़रे ज़माने के गायकों पर अगर हम ध्यान दें तो पाएँगे कि ऐसी महारत और किसी गायक को हो ना हो, मोहम्मद रफ़ी साहब को ज़रूर हासिल थी. उनका गाया हुआ एक एक नग्मा इस बात का गवाह है. गीत चाहे कैसा भी हो, हर एक गीत वो इस क़दर गा जाते थे कि उनके गाने के बाद और किसी की आवाज़ में उस गीत की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. ऐसी ही एक ग़ज़ल है 1958 की फिल्म "कालापानी" में जो आज आपकी सेवा में हम लेकर आए हैं - "हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गये, सागर में ज़िंदगी को उतारे चले गये". दोस्तों, मैने पिछले कुछ सालों में विविध भारती के कई नायाब 'interviews' को लिपीबद्ध किया है और आज मेरे इस ख़ज़ाने में 600 से ज़्यादा 'रे...