(ये आलेख नहीं है बल्कि मेरी एक कहानी ''शायद जोशी'' का अंश है ये कहानी मेरे कहानी संग्रह ''ईस्ट इंडिया कम्पनी'' की संभावित कहानियों में से एक है ।) - पंकज सुबीर अचानक उसे याद आया कल रात को रेडियो पर सुना लता मंगेशकर का फिल्म शंकर हुसैन का वो गाना 'अपने आप रातों में' । उसे नहीं पता था कि शंकर हुसैन में एक और इतना बढ़िया गाना भी है वरना अभी तक तो वो 'आप यूं फासलों से गुज़रते रहे' पर ही फिदा था । हां क्या तो भी शुरूआत थी उस गाने की 'अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं, चौंकते हैं दरवाज़े सीढ़ियाँ धड़कती हैं' उफ्फ क्या शब्द हैं, और कितनी खूबसूरती से गाया है लता मंगेशकर ने । 'अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं चौंकते हैं दरवाज़े सीढियां धड़कती हैं अपने आप.....' और उस पर खैयाम साहब का संगीत, कोई भारी संगीत नहीं, हलके हल्के बजते हुए साज और बस मध्यम मध्यम स्वर में गीत । और उसके बाद 'अपने आप' शब्दों को दोहराते समय 'आ' और 'प' के बीच में लता जी का लंबा सा आलाप उफ्फ जानलेवा ही तो है । एक तो फिल्म का नाम ही कितना...