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दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर : ९२वें जन्मदिवस पर स्मरण

स्वरगोष्ठी – ७२ में आज - ‘रघुपति राघव राजाराम...’  वह संगीत, जिससे महात्मा गाँधी ने भी प्रेरणा ग्रहण की थी  भारतीय संगीत को जनसामान्य में प्रतिष्ठित स्थान दिलाने में जिन शिखर-पुरुषों का आज हम स्मरण करते हैं , उनमें एक नाम पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर का है। मात्र ३४ वर्ष की आयु में ही उन्होने भारतीय संगीत के कोश को समृद्ध कर इस नश्वर जगत से विदा ले लिया था। कल २८ मई को इस महान संगीतज्ञ ९२ वीं जयन्ती है। इस अवसर पर ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ की ओर से श्रद्धेय पलुस्कर जी की स्मृतियों को सादर नमन है।   ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज हम एक ऐसे संगीतज्ञ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आपसे चर्चा करेंगे, जिन्होने अपने छोटे से जीवन-काल में भारतीय संगीत को असाधारण रूप से समृद्ध किया। आज हम चर्चा कर रहे हैं, पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर, जिनका जन्म २८ मई, १९२१ को नासिक, महाराष्ट्र में, भारतीय संगीत के उद्धारक पण्डित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर की बारहवीं सन्तान के रूप में

गीत उस्तादों के : चर्चा राग सोहनी की

स्वरगोष्ठी – ७१ में आज राग सोहनी के स्वरों का जादू : 'प्रेम जोगन बन के...' पटियाला कसूर घराने के सिरमौर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ पिछली शताब्दी के बेमिसाल गायक थे। अपनी बुलन्द गायकी के बल पर संगीत-मंचों पर लगभग आधी शताब्दी तक उन्होने अपनी बादशाहत को कायम रखा। पंजाब अंग की ठुमरियों के वे अप्रतिम गायक थे। संगीत-प्रेमियों को उन्होने संगीत की हर विधाओं से मुग्ध किया, किन्तु फिल्म संगीत से उन्हें परहेज रहा। एकमात्र फिल्म- ‘मुगल-ए-आजम’ में उनके गाये दो गीत हैं। आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हम इनमें से एक गीत पर चर्चा करेंगे। शा स्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक और फिल्म संगीत पर केन्द्रित साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी पाठकों-श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, हमारे कई संगीत-प्रेमियों ने फिल्म संगीत में पटियाला कसूर घराने के विख्यात गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के योगदान पर चर्चा करने का आग्रह किया था। आज का यह अंक हम उन्हीं की फरमाइश पर प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय फिल्मों के इतिहास में १९५९ में बन कर तैयार फिल्म- ‘मुगल

‘आज गावत मन मेरो....’ : गीत उस्तादों के, चर्चा राग- देसी की

पंडित डी वी पलुस्कर  हिन्दी फिल्मों का इतिहास १९५३ में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म ‘बैजू बावरा’ के उल्लेख के बिना अधूरा ही रहेगा। संगीतकार नौशाद को भारतीय संगीत के रागों के प्रति कितनी श्रद्धा थी, इस फिल्म के गीतों को सुन कर स्पष्ट हो जाता है। अपने समय के जाने-माने संगीतज्ञों को फिल्म संगीत के मंच पर लाने में नौशाद अग्रणी रहे हैं। आज की गोष्ठी में हम फिल्म ‘बैजू बावरा’ के एक गीत के माधम से प्रकृति के रंगों को बिखेरने में सक्षम राग ‘देसी’ अथवा ‘देसी तोड़ी’ पर चर्चा करेंगे। स्वरगोष्ठी – 51 उस्ताद अमीर खान और डी वी पलुस्कर न ये वर्ष के एक नये अंक और एक नये शीर्षक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आपकी इस सुरीली गोष्ठी में उपस्थित हूँ। विगत एक वर्ष तक आपका प्रिय स्तम्भ ‘सुर संगम’, अब आपके सुझावों के अनुरूप न केवल नये शीर्षक, बल्कि नये कलेवर के साथ आपके सम्मुख प्रस्तुत है। मित्रों, इस बदले हुए स्वरूप में अब आपकी सहभागिता भी रहेगी। आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हमारी चर्चा के विषय हैं- राग देसी, उस्ताद अमीर खान, पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर (डी.वी. पलुस्कर),संगीतकार नौशाद और फिल्म बैजू बावरा। म