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"माँ तो माँ है...", माँ दिवस पर विश्व की समस्त माँओं को समर्पित एक नया गीत

यूँ तो यह माना जाता है कि कवि किसी भी विषय पर लिख सकता है, अपने भाव व्यक्त कर सकता है और अमूमन ऎसा होता भी है। लेकिन दुनिया में अकेली एक ऎसी चीज है जिसे आज तक कोई भी शब्दों में बाँध नहीं सका है। और उस शय का नाम है "माँ"। माँ....जो बच्चे के मुख से निकला पहला शब्द होता है और शायद अंतिम भी, माँ जो हर रोज सुबह को जगाती है और शाम को चादर दे सुला देती है, माँ जो हर कुछ में है लेकिन ऎसा व्यक्त करती है मानो कुछ में भी न हो। माँ.......जो पिता का संबल है, बेटे की जिद्द है और बेटी की रीढ है ... माँ जो निराशा में आशा की एक किरण है, चोट में मलहम है, धूप में गीली मिट्टी है और ठण्ड में हल्की सी धूप है, माँ .....जो और कुछ नहीं, बस माँ है... बस माँ!! मिट्टी पे दूब-सी, कुहे में धूप-सी, माँ की जाँ है, रातों में रोशनी, ख्वाबों में चाशनी, माँ तो माँ है, चढती संझा, चुल्हे की धाह है, उठती सुबह,फूर्त्ति की थाह है। माँ...खुद में हीं बेपनाह है । ....ऎसी मेरी , उनकी, आपकी, हम सबकी माँ है। ये शब्द हैं कवि और गीतकार, विश्व दीपक "तन्हा" के. पर क्या शब्दों में बांधा जा सकता है "माँ" क...

सीखिए गायकी के गुर

गाना आए या न आए,गाना चाहिए...जनाब बाथरूम सिंगिंग छोडिये, और महफिलों की जान बनिए, आवाज़ पर संजय पटेल लेकर आए हैं, नए गायकारों के लिए मशहूर संगीतकार कुलदीप सिंह के सुझाये कुछ नायाब टिप्स... दोस्तो, एक संगीत प्रतियोगिता के संचालन के दौरान, मैंने बतौर निर्णायक उपस्थित, जाने माने संगीतकार कुलदीप सिंह (फ़िल्म साथ-साथ और अंकुश से मशहूर), जिन पर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह को पहली बार पार्श्व गायन में उतारने का श्रेय भी है, से जानना चाहा कुछ ऐसे मशवरे, जो उभरते हुए नए गायकों, विशेषकर जो सुगम संगीत (गीत, ग़ज़ल,और भजन आदि ) गा रहे हैं या फ़िर इस क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं. कुलदीप जी ने जो बातें बतायीं वो आपके साथ बाँट रहा हूँ, एक बार फ़िर "आवाज़" के मध्यम से, तो गायक दोस्तो, नोट कर लीजिये कुछ अनमोल टिप्स : - ज़्यादातर बाल कलाकार अपने गुरू का रटवाया हुआ गाते हैं.गुरूजनों का दायित्व है कि वे इस बात का ख़ास ख़याल रखें कि क्या जो बच्चे को सिखाया जा रहा है, वह उसकी उम्र पर फ़बता है. - कविता/शायरी की समझ सबसे बड़ी चीज़ है.जब गा रहे हैं ' रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ’ तो ये जानना ज़र...

"बटाटा वड़ा...ये समुन्दर...संगीत...तुम्हे इन छोटी छोटी चीज़ों में कितनी खुशी मिलती है..."

आवाज़ पर आज दिन है - Music video of the month का, हमारी टीम आपके लिए चुन कर लाएगी -एक गीत जो सुनने में तो कर्णप्रिय हो ही, साथ ही उसका विडियो भी एक शानदार प्रस्तुति हो, यानि कि ऐसा गीत जो पांचों इन्द्रियों को संतृप्त करें, हमारी टीम की पसंद आपको किस हद तक पसंद आएगी, ये तो आपकी टिप्पणियां ही हमें बतायेंगीं. आज हम जिस गीत का विडियो लेकर उपस्थित हैं, वो गीत है फ़िल्म "सत्या" का, सत्या को राम गोपाल वर्मा , एक Hard Core Realistic फ़िल्म बनाना चाहते थे, तो जाहिर है, गीत संगीत के लिए, उसमें कोई स्थान नही था, पर जब फ़िल्म बन कर तैयार हुई, तो निर्माता जिद करने लेगे फ़िल्म में गीत डाले जायें ताकि फ़िल्म की लम्बाई बढ़े और Audio प्रचार भी मिल सके, अन्तता रामू जी को अपनी जिद छोडनी पड़ी, उन दिनों माचिस के गीतों से हिट हुई जोड़ी, विशाल भारद्वाज और गुलज़ार , को चुना गया इस काम के लिए, पटकथा में परिस्थियाँ निकाली गयीं और आनन फानन में ५ गीत रिकॉर्ड हुए और फिल्माए गए, फ़िल्म बेहद कामियाब रही, और संगीत ने लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई, " सपने में मिलती है " और " गोली मार भेजे ...