'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोताओं व पाठकों को हमारी तरफ़ से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है तलत महमूद पर केन्द्रित शृंखला 'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़'। जैसा कि हमने आप से पहली ही कहा था कि तलत महमूद की गाई ग़ज़लों की इस ख़ास शृंखला के दस में से नौ ग़ज़लें फ़िल्मों से चुनी हुई होगी और आख़िरी ग़ज़ल हम आपको ग़ैर फ़िल्मी सुनवाएँगे। तो आज बारी है आख़िरी फ़िल्मी ग़ज़ल की। ६० के दशक के आख़िर के सालों में फ़िल्म संगीत पर पाश्चात्य संगीत इस क़दर हावी हो गया कि गीतों से नाज़ुकी और मासूमियत कम होने लगी। ऐसे में वो कलाकार जो इस बदलाव के साथ अपने आप को बदल नहीं सके, वो धीरे धीरे फ़िल्मों से दूर होते चले गए। इनमें कई कलाकार अपनी स्वेच्छा से पीछे हो लिए तो बहुत सारे अपने आप को इस परिवर्तन में ढाल नहीं सके। तलत महमूद उन कलाकारों में से थे जो स्वेच्छा से ही इस जगत को त्याग दिया और ग़ैर फ़िल्म संगीत जगत में अपने आप को व्यस्त कर लिया। आज हमने एक ऐसी ग़ज़ल चुनी है जो बनी थी सन १९६९ में। फ़िल्म 'पत्थर के ख़्वाब' फ़िल्मी की यह ग़ज़ल पाल प्रेमी साहब का लिखा हुआ है और संगीत है एन. दत्ता का। है बड़ा ही सीधा सादा, लेकिन इस ग़ज़ल को सुनते हुए इसकी धुन कुछ इस तरह से ज़हन में रच बस जाती है कि केवल एक बार सुन कर जी नहीं भरता। झूठ नहीं बोलूँगा, मैंने यह ग़ज़ल पहले कभी नहीं सुनी थी। इस शृंखला के लिए यह ग़ज़ल मैंने पहली बार सुनी और पहली ही बार में यह मुझे इतना अच्छा लगा कि अब तक ५ मर्तबा सुन चुका हूँ। "यादों का सहारा ना होता हम छोड़ के दुनिया चल देते, ये दर्द जो प्यारा ना होता हम छोड़ के दुनिया चल देते"। जाने क्या बात है इस ग़ज़ल में कि यह सुनने वाले को अपनी ओर आकर्षित करती है। ऒर्केस्ट्रेशन भी सरल है। तबले का अच्छा प्रयोग है, इंटरल्युड में स्ट्रिंग्स सुनने को मिलते हैं।
दोस्तों, 'पत्थर के ख़्वाब' फ़िल्म आई थी १९६९ में जिसका निर्माण हुआ था नागिन प्रोडक्शन्स के बैनर तले। महीपाल, परवीन चौधरी, डी. के. सप्रू, मोहन चोटी प्रमुख अभिनीत इस फ़िल्म को निर्देशित किया था पाल प्रेमी ने। जी हाँ, वही पाल प्रेमी जिन्होने इस ग़ज़ल को भी लिखा। पाल प्रेमी साहब ना केवल निर्देशक और गीतकार थे, बल्कि उन्होने अभिनय के क्षेत्र में भी अपना हाथ आज़माया था। १९६५ की फ़िल्म 'श्रीमान फ़ंटूश' में उन्होने अभिनय किया। बतौर निर्देशक 'पत्थर के ख़्वाब' के अलावा १९६७ की फ़िल्म 'हमारे ग़म से मत खेलो' का भी निर्देशन किया। १९५५ की फ़िल्म 'हातिमताई की बेटी' में उन्होने सह निर्देशक के रूप में काम किया था। दोस्तों, पाल प्रेमी साहब के बारे में हम केवल इतनी ही जानकारी बटोर सके। अगर आप उनके फ़िल्मी करीयर या जीवन से संबंधित किसी बात की जानकारी रखते हों तो हमारे साथ ज़रूर बाँटिएगा। इस फ़िल्म के संगीतकार एन. दत्ता ने चोपड़ा कैम्प की कई बड़ी फ़िल्मों में संगीत दिया है। लेकिन वक़्त बहुत ज़ालिम होता है। जब इंसान का वक़्त अच्छा होता है तो हर कोई साथ देता है और वक़्त बुरा हो तो हर चीज़ मुंह मोड़ लेती है। दत्त साहब के साथ भी यही हुआ। जब तक स्वास्थ्य ने साथ दिया, उन्हे बड़ी फ़िल्में मिलती रहीं, लेकिन जब स्वास्थ्य बिगड़ने लगा तो चोपड़ा कैम्प भी संगीतकार रवि की ओर मुड गया। एन. दत्ता कमचर्चित फ़िल्मों में संगीत देने लगे और गुमनामी की तरफ़ निकल पड़े। आज की यह फ़िल्म भी एक ऐसी ही फ़िल्म है, जिसने सफलता की किरण तो नहीं देखी, लेकिन ख़ास कर तलत साहब की गाई इस ग़ज़ल ने आज तक इस फ़िल्म के नाम को ज़िंदा कर रखा है। यक़ीन मानिए या आप ख़ुद आजमा लीजिए कि गूगल पर अगर आप 'पत्थर के ख़्वाब' ढ़ूंढते हैं तो ज़्यादातर इस ग़ज़ल के ही रेज़ल्ट्स आते हैं, ना कि इस फ़िल्म के। आइए अब इस ग़ज़ल का लुत्फ़ उठाया जाए। हम तो भई यही कहेंगे कि अगर तलत साहब के गाए गीतों और ग़ज़लों का सहारा फ़िल्म संगीत को नहीं मिलता तो इस धरोहर की क़ीमत बहुत कम होती। पेश-ए-ख़िदमत है यह ग़ज़ल और इसके तमाम शेर इस प्रकार हैं:
यादों का सहारा ना होता हम छोड़ के दुनिया चल देते,
ये दर्द जो प्यारा ना होता हम छोड़ के दुनिया चल देते।
टूटा हुआ दिल टूटे अरमान तेरी हैं अमानत पास मेरे,
ये दिल जो तुम्हारा ना होता हम छोड़ के दुनिया चल देते।
शायद के तेरे काम आ जाए ये जान मेरी ओ जान-ए-जिगर,
क़िस्मत का इशारा ना होता हम छोड़ के दुनिया चल देते।
रुक जाए कहाँ है किसको ख़बर दौरान-ए-सफ़र या मंज़िल पर,
गरदिश में सितारा ना होता हम छोड़ के दुनिया चल देते।
क्या आप जानते हैं...
कि तलत महमूद ने १२ भारतीय भाषाओं में कुल ७४७ गीत गाए हैं, और ये भाषाएँ हैं - उर्दू/ हिंदी, बंगला, भोजपुरी, तेलुगू, गुजराती, मराठी, मलयालम, पंजाबी, सिंधी, अवधी, मारवारी और असमीया।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मतले में ये दो शब्द है - "आंसुओं" और "सूरतों", बताईये ग़ज़ल के बोल.-३ अंक.
2. इस गज़ल को किसने लिखा है बताएं - ३ अंक.
3. गज़ल के संगीतकार का नाम बताएं- २ अंक.
4. तलत साहब एक अमेरिकी सिगरेट कम्पनी के विज्ञापन में भी नज़र आये थे, कौन सी थी वो कंपनी-सही जवाब के मिलेंगें ३ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
एक बार फिर शरद जी न सिर्फ सही जवाब देकर ३ अंक कमाए, बल्कि हमारी गलती को दुरुस्त भी किया, जाहिर है शरद जी बेहद ध्यान से हमारी हर पोस्ट पढते हैं, उनके जैसा श्रोता हमें कोई शायाद ही मिल पाए, इंदु जी, बधाई आपने भी ३ अंक जोड़े अपने खाते में, अब आपके क्या कहने, अवध जी भी २ अंकों के हकदार बनें, पाबला जी फिर गायब हो गए :), चलिए आप सभी को होली की ढेरों ढेरों शुभकामनाएं. ईश्वर आप सब के जीवन में भी प्रेम के रंगों की ऐसी बौछार करें कि आने वाला हर दिन आप के जीवन में खुशियों से लदा लदा आये....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी