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प्लेबैक इंडिया वाणी (१८) ओह माई गॉड, और आपकी बात

संगीत समीक्षा -   ओह माई गॉड प्रेरणा बॉलीवुड का सबसे लोकप्रिय शब्द है...कोई अंग्रेजी फिल्मों से प्रेरित होता है, कोई दक्षिण की फिल्मों की नक़ल घोल कर करोड़ों कमा लेता है. कभी कभार कोई निर्माता अभिनेता साहित्य या थियटर से भी प्रेरित हो जाता है. ऐसे ही एक मंचित नाटक का फ़िल्मी रूपांतरण है “ओह माई गोड”. फिल्म में संगीत है हिमेश रेशमिया का, जो सिर्फ “हिट” गीत देने में विश्वास रखते हैं, चाहे प्रेरणा कहीं से भी ली जाए. आईये देखें “ओह माई गोड” के संगीत के लिए उनकी प्रेरणा कहाँ से आई है.  बरसों पहले कल्याण जी आनंद जी  का रचा “गोविदा आला रे” गीत पूरे महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दौरान आयोजित होने वाले दही हांडी प्रतियोगिताओं के लिए एक सिग्नेचर धुन बन चुका था, हिमेश ने इसी धुन को बेहद सफाई से इस्तेमाल किया है “गो गो गोविंदा” गीत के लिए. इस साल जन्माष्टमी से कुछ दिन पहले ये गीत एक सिंगल की तरह श्रोताओं के बीच उतरा गया, और इसके लाजवाब नृत्य संयोजन ने इसे रातों रात एक हिट गीत में बदल दिया. इस साल लगभग सभी दही हांडी समारोहों में ये गीत जम कर बजा, और इस तरह फिल्...

प्लेबैक इंडिया वाणी (१७) हीरोईन, और आपकी बात

संगीत समीक्षा -   हीरोईन संवेदनशील विषयों को अपनी समग्रता के साथ परदे पर उतारने के लिए जाने जाते हैं निर्देशक मधुर भंडारकर. तब्बू से लेकर रवीना, प्रियंका तक जितनी भी हेरोईनों ने उनके साथ काम किया है अपने करियर की बेहतरीन प्रस्तुति दी है, ऐसे में जब फिल्म का नाम ही हेरोईन हो, तो दर्शकों को उम्मीद रहेगी कि उनकी फिल्म, माया नगरी में एक अभिनेत्री के सफर को बहुत करीब से उजागर करेगी. जहाँ तक उनकी फिल्मों के संगीत का सवाल है वो कभी भी फिल्म के कथा विषय के ऊपर हावी नहीं पड़ा है. चलिए देखते हैं फिल्म “हेरोईन” के संगीत का हाल – मधुर की फिल्म “फैशन” में जबरदस्त संगीत देने वाले सलीम सुलेमान को ही एक बार फिर से आजमाया गया है “हेरोईन” के लिए. गीतकार हैं निरंजन आयंगर. आईटम गीतों के प्रति हमारे फिल्मकारों की दीवानगी इस हद तक बढ़ गयी है कि और कुछ हो न हो एक आईटम गीत फिल्म में लाजमी है, ऐसे ही एक आईटम गीत से अल्बम की शुरुआत होती है- हलकट जवानी. मुन्नी और शीला की तर्ज पर एक और थिरकती धुन, मगर हलकट जवानी पूरी तरह से एक बनावटी गीत लगता है. चंद दिनों बाद कोई शायद ही इस गीत को सुनना पसंद...

प्लेबैक वाणी (3) -शंघाई, टोला और आपकी बात

संगीत समीक्षा - शंघाई खोंसला का घोंसला हो या ओए लकी लकी ओए हो, दिबाकर की फिल्मों में संगीत हटकर अवश्य होता है. उनका अधिक रुझान लोक संगीत और कम लोकप्रिय देसिया गीतों को प्रमुख धारा में लाने का होता है. इस मामले में ओए लकी का संगीत शानदार था,  “ तू राजा की राजदुलारी ’  और  “ जुगनी ”  संगीत प्रेमियों के जेहन में हमेशा ताज़े रहेंगें जाहिर है उनकी नयी फिल्म शंघाई से भी श्रोताओं को उम्मीद अवश्य रहेगी. अल्बम की शुरुआत ही बेहद विवादस्पद मगर दिलचस्प गीत से होती है जिसे खुद दिबाकर ने लिखा है.  “ भारत माता की जय ”  एक सटायर है जिसमें भारत के आज के सन्दर्भों पर तीखी टिपण्णी की गयी है. सोने की चिड़िया कब और कैसे डेंगू मलेरिया में तब्दील हो गयी ये एक सवाल है जिसका जवाब कहीं न कहीं फिल्म की कहानी में छुपा हो सकता है, विशाल शेखर का संगीत और पार्श्व संयोजन काफी लाउड है जो टपोरी किस्म के डांस को सप्पोर्ट करती है. विशाल ददलानी ने मायिक के पीछे जम कर अपनी कुंठा निकाली है. अल्बम का दूसरा गीत एक आइटम नंबर है मगर जरा हटके. यहाँ इशारों इशारों में एक बार फिर व्यंगात्मक...