स्वरगोष्ठी – ६३ में आज ‘यही ठइयाँ मोतिया हेरा गइलीं रामा...’ पिछले अंक में आपने उपशास्त्रीय संगीत के गायक-वादकों के माध्यम से चैती गीतों का आनन्द प्राप्त किया था। आज हम चैती गीतों के, ग्रामोफोन रिकार्ड, फिल्म और सुगम संगीत के अन्य माध्यमों में किये गए प्रयोग पर चर्चा करेंगे। शा स्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक और फिल्म संगीत की चर्चाओं पर केन्द्रित हमारी-आपकी इस अन्तरंग साप्ताहिक गोष्ठी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आपका स्वागत करता हूँ। आप सब पाठको/श्रोताओं को शुक्रवार से आरम्भ हुए भारतीय नववर्ष के उपलक्ष्य में हमारी ओर से हार्दिक बधाई। अपने पिछले अंक से हमने चैत्र मास में गायी जाने वाली लोक संगीत की शैली ‘चैती’ पर चर्चा आरम्भ की थी। यूँ तो चैती लोक संगीत की शैली है, किन्तु ठुमरी अंग में ढल कर यह और भी रसपूर्ण हो जाती है। पिछले अंक में हमने आपको शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के कलाकारों से कुछ चैती गीतों का रसास्वादन कराया था। आज हम आपसे पुराने ग्रामोफोन रिकार्ड और फिल्मों में चैती के प्रयोग पर चर्चा करेंगे। भारत में ग्रामोफोन रिकार्ड के निर्माण का आरम्भ १९०२ से हुआ था। पहले ग...