Taaza Sur Taal (TST) - 08/2011 - BARSE BARSE कुछ चीजें जितनी पुरानी हो जाएँ, उतनी ज्यादा असर करती हैं, जैसे कि पुरानी शराब। ज्यों-ज्यों दिन बीतता जाए, त्यों-त्यों इसका नशा बढता जाता है। यह बात अगर बस शराब के लिए सही होती, तो मैं यह ज़िक्र यहाँ छेड़ता हीं नहीं। यहाँ मैं बात उन शख्स की कर रहा हूँ, जिनकी लेखनी का नशा शराब से भी ज्यादा है और जिनके शब्द अल्कोहल से भी ज्यादा मारक होते हैं। पिछले आधे दशक से इस शख्स के शब्दों का जादू बरकरार है... दर-असल बरकरार कहना गलत होगा, बल्कि कहना चाहिए कि बढता जा रहा है। हमने इनके गानों की बात ज्यादातर तब की है, जब ये किसी फिल्म का हिस्सा रहे हैं, लेकिन "ताज़ा सुर ताल" के अंतर्गत पहली बार हम एक एलबम के गानों को इनसे जोड़कर लाए हैं। हमने "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" में इनके कई सारे गैर-फिल्मी गाने सुनें हैं और सुनते रहेंगे। हम अगर चाहते तो इस एलबम को भी महफ़िल-ए-ग़ज़ल का हिस्सा बनाया जा सकता था, लेकिन चुकी यह "ताज़ा एलबम" है, तो "ताज़ा सुर ताल" हीं सही उम्मीदवार साबित होता है। अभी तक की हमारी बातों से आपने उन शख्स को पहचान तो