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पीतल की मेरी गागरी....लोक संगीत और गाँव की मिटटी की महक से चहकता एक 'सखी सहेली' गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 399/2010/99 कु छ आवाज़ें ऐसी होती हैं जिनमें इस मिट्टी की महक मौजूद होती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसी आवाज़ें इस मिट्टी से जुड़ी हुई लगती है, जिन्हे सुनते हुए हम जैसे किसी सुदूर गाँव की तरफ़ चल देते हैं और वहाँ का नज़ारा आँखों के सामने तैरने लगता है। जैसे दूर किसी पनघट से पानी भर कर सखी सहेलियाँ कतार बना कर चली आ रही हों गाँव की पगडंडियों पर। आज हमने जिस गीत को चुना है उसे सुनते हुए शायद आपके ज़हन में भी कुछ इसी तरह के ख्यालात उमड़ पड़े। जी हाँ, 'सखी सहेली' शृंखला की आज की कड़ी में प्रस्तुत है मिनू पुरुषोत्तम और परवीन सुल्ताना की आवाज़ों में फ़िल्म 'दो बूंद पानी' का एक बड़ा ही प्यारा गीत "पीतल की मेरी गागरी"। इसमें वैसे मिनू जी और परवीन जी के साथ साथ उनकी सखी सहेलियों की भी आवाज़ें मौजूद हैं, लेकिन मुख्य आवाज़ें इन दो गायिकाओं की ही हैं। संगीतकार जयदेव की इस रचना में इस देश की मिट्टी का सुरीलापन कूट कूट कर समाया हुआ है। लोक गीत के अंदाज़ में बना यह गीत कैफ़ी आज़मी साहब के कलम से निकला था। आपको याद होगा कि सन्‍ १९७१ में ख़्वाजा अहम...

नि मैं यार मानना नि चाहें लोग बोलियां बोले...जब मिलाये मीनू पुरषोत्तम ने लता के साथ ताल से ताल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 338/2010/38 फ़ि ल्म संगीत के सुनहरे दौर के कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'हमारी याद आएगी' की आठवीं कड़ी में आज एक ऐसी गायिका का ज़िक्र जिन्होने कमल बारोट की तरह दूसरी गायिका के रूप में लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ कई हिट गीत गाईं हैं। मिट्टी की सौंधी सौंधी महक वाली आवाज़ की धनी मीनू पुरुषोत्तम का ज़िक्र आज की कड़ी में। युं तो मीनू पुरुषोत्तम ने बहुत सारे कम बजट की फ़िल्मों में एकल गीत गाईं हैं, लेकिन उनके जो चर्चित गानें हैं वह दूसरी गायिकाओं के साथ गाए उनके युगल गीत ही हैं। जैसे कि लता जी के साथ फ़िल्म 'दाग़' का थिरकता गीत "नि मैं यार मनाना नी, चाहे लोग बोलियाँ बोले", आशा जी के साथ 'ये रात फिर ना आएगी' का "हुज़ूर-ए-वाला जो हो इजाज़त", सुमन कल्य़ाणपुर के साथ गाया फ़िल्म 'ताजमहल' का गीत "ना ना ना रे ना ना, हाथ ना लगाना" (जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर बजा चुके हैं), परवीन सुल्ताना के साथ गाया फ़िल्म 'दो बूंद पानी' का गीत "पीतल की मेरी ग...

ना ना ना रे ना ना ...हाथ ना लगाना... दो अलग अंदाज़ ओ आवाज़ की गायिकाओं का सुंदर मेल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 95 आ म तौर पर फ़िल्मी युगल गीत में एक गायक और एक गायिका की आवाज़ें हुआ करती हैं। लेकिन समय समय पर कुछ ऐसे युगल गीत भी बने हैं जिन्हे या तो दो गायकों ने गाये हैं या फिर दो गायिकाओं ने, और इनमें से बहुत सारे गानें बेहद कामयाब भी हुए हैं। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक ऐसा ही 'फ़िमेल डुएट' प्रस्तुत है। फ़िल्म संगीत के इतिहास मे अगर झाँका जाए तो हम पाते हैं कि ऐसी बहुत सारी फ़िल्में हैं जिनमें लता मंगेशकर ने नायिका का पार्श्वगायन किया है जब कि कुछ थोड़े से कमचर्चित गायिकाओं ने दूसरी चरित्र अभिनेत्रियों या फिर नायिका की सहेलियों, या फिर किसी जलसे या मुजरे के लिए अपनी आवाज़ें दी हैं। यह भी एक ऐसा ही गीत है जिसे दो बड़े ही अनोखी गायिकाओं ने गाया है। यह गीत है १९६३ की फ़िल्म ताजमहल का जिसे गाया है सुमन कल्याणपुर और मीनू पुरुषोत्तम ने। यूँ तो इस मशहूर फ़िल्म के बहुत से गीत बहुत ही कामयाब हुए, ख़ास कर लता-रफ़ी के गाए "जो वादा किया" और "पाँव छू लेने दो", और दूसरे कुछ गीत भी प्रसिद्ध हुए। उस दृष्टि से सुमन और मीनू का गाया यह गीत ज़रा कम सुना...