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गाँव से लायी एक सुरीला सपना रश्मि प्रभा और जिसे मिलकर संवार रहे हैं ऋषि, कुहू, श्रीराम और सुमन सिन्हा

दोस्तों, आपने गौर किया होगा कि एक दो शुक्रवारों से हम कोई नया गीत अपलोड नहीं कर रहे हैं. दरअसल बहुत से गीत हैं जिन पर काम चल रहा है, पर ऑनलाइन गठबंधन की कुछ अपनी मजबूरियां भी होती है, जिनके चलते बहुत से गीत अधर में फंस जाते हैं. पर हम आपको बता दें कि आवाज़ महोत्सव का तीसरा सत्र जारी है और अगला नया गीत आप जल्द ही सुनेंगें. इन सब नए गीतों के निर्माण के अलावा भी कुछ प्रोजेक्ट्स हैं जिन पर आवाज़ की टीम पूरी तन्मयता से काम कर रही है. ऐसे ही एक प्रोजेक्ट् से आईये आपका परिचय कराएँ आज. युग्म से जुड़े सबसे पहले संगीतकार ऋषि एस एक बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार हैं, इस बात का अंदाजा, हर सत्र में प्रकाशित उनके गीतों को सुनकर अब तक हमारे सभी श्रोताओं को भी हो गया होगा. आमतौर पर आजकल संगीतकार धुन पहले रचते हैं, ऐसे में दिए हुए शब्दों को धुन पर बिठाना और उसमें जरूरी भाव भरना एक दुर्लभ गुण ही है, और उससे भी दुर्लभ है गुण, शुद्ध कविताओं को स्वरबद्ध करने का. अमूमन गीत एक खास खांचे में लिखे जाते हैं ताकि धुन आसानी से बिठाई जा सके, पर जब कवि कविता लिखता है तो वह इन सब बंधनों से दूर रहकर अपने मन को शब्दों में ...

गीली आँखों के धुंधले मंजर में भी दिखी उम्मीद की लहर - बॉलीवुड अंदाज़ के जख्मों को हॉलीवुड अंदाज़ का मरहम

Season 3 of new Music, Song # 19 आज आवाज़ महोत्सव में पहली बार एक ऐसा गीत पेश होने जा रहा है, जिसमें रैप गायन है, जो दो पुरुष गायकों की आवाजों में है और जिसमें दो भाषाओं में शब्द लिखे गए हैं. "प्रभु जी" गीत की आपार सफलता के बाद श्रीनिवास पंडा फिर लौटे हैं इस सत्र में और जैसा हर बार होता है वो अपने श्रोताओं के लिए कुछ नया लेकर ही आये हैं. गीत दृभाषीय है, तो यहाँ हिंदी के शब्द सजीव सारथी ने लिखे है अंग्रेजी शब्द रचे हैं खुद रैपर आसिफ ने जो खुद को "रेग्गड स्कल" कहते हैं. श्रीराम की आवाज़ आप इससे पहले सूफी गीत "हुस्न-ए-इलाही" में सुन चुके है, आज के गीत में उनका अंदाज़ एकदम अलग है. ये एक एक्सपेरिमेंटल गीत है जिसमें संगीत के दो अलग अलग आयामों का मिश्रण करने की कोशिश की गयी है, हम उम्मीद करेंगें कि हमारे श्रोताओं को ये प्रयोग अच्छा लगेगा. गीत के बोल - सांसे चुभे सीने में जैसे खंजर, गीली हैं ऑंखें धुंधला है सारा मंजर, (2) मेरे पैरों हैं जमीं न सर पे आसमाँ है, जब से वो खफा हुआ, कोई पूछे क्या गिला है, जाने क्या वज़ा है, जो वो बेवफा हुआ…… You should know nothin’ ev...

जब हुस्न-ए-इलाही बेपर्दा हुआ वी डी, ऋषि और नए गायक श्रीराम के रूबरू

Season 3 of new Music, Song # 17 सूफी गीतों का चलन इन दिनों इंडस्ट्री में काफी बढ़ गया है. लगभग हर फिल्म में एक सूफियाना गीत अवश्य होता है. ऐसे में हमारे संगीतकर्मी भी भला कैसे पीछे रह सकते हैं. सूफी संगीत की रूहानियत एक अलग ही किस्म का आनंद लेकर आती है श्रोताओं के लिए, खास तौर पे जब बात हुस्न-ए-इलाही की तो कहने ही क्या. जिगर मुरादाबादी के कलाम को विस्तार दिया है विश्व दीपक तन्हा ने. दोस्तों गुलज़ार साहब इंडस्ट्री में इस फन के माहिर समझे जाते हैं. ग़ालिब, मीर आदि उस्ताद शायरों के शेरों को मुखड़े की तरह इस्तेमाल कर आगे एक मुक्कमल गीत में ढाल देने का काम बेहद खूबसूरती से अंजाम देते रहे हैं वो. हम ये दावे के साथ कह सकते हैं इस बार हमारे गीतकार उनसे इक्कीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं हैं यहाँ. ऋषि ने पारंपरिक वाद्यों का इस्तेमाल कर सुर रचे हैं तो गर्व के साथ हम लाये हैं एक नए गायक श्रीराम को आपके सामने जो दक्षिण भारतीय होते हुए भी उर्दू के शब्दों को बेहद उ्म्दा अंदाज़ में निभाने का मुश्किल काम कर गए हैं इस गीत में. साथ में हैं श्रीविद्या, जो इससे पहले " आवारगी का रक्स " गा चुकी हैं हम...