स्वरगोष्ठी-१०० में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ११ ‘आ जा साँवरिया तोहे गरवा लगा लूँ, रस के भरे तोरे नैन...’ ‘स्वरगोष्ठी’ के १००वें अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, आपकी शुभकामनाओं, आपके सुझावों और मार्गदर्शन के बल पर आज हम ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के १००वें अंक तक आ पहुँचे है। इन दिनों इस साप्ताहिक स्तम्भ के अन्तर्गत लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ का हम प्रकाशन कर रहे हैं। आज इस श्रृंखला की ११वीं कड़ी है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हमने आपको कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों का रसास्वादन कराया जिन्हें फिल्मों में शामिल किया गया था। इस लघु श्रृंखला को अब हम आज विराम देंगे और नए वर्ष से आप सब के परामर्श के आधार पर एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ करेंगे। आइए, अब आज की कड़ी का आरम्भ करते हैं। ल घु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के अन्तर्गत आज हम जिस ठुमरी पर चर्चा करेंगे, वह है- ‘आ जा साँवरिय