स्वरगोष्ठी – 221 में आज
दस थाट, दस राग और दस गीत – 8 : आसावरी थाट
राग आसावरी में ‘सजन घर लागे...’
और
अड़ाना में ‘झनक झनक पायल बाजे...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक
स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस
गीत’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का
हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के
रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे
हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12
स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से
कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’,
रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से
क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा
जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर
भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट का प्रचलन
पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में
रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा
प्रचलित ये दस थाट हैं; कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी,
आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं दस थाटों के अन्तर्गत प्रचलित-अप्रचलित सभी
रागों को वर्गीकृत किया जाता है। श्रृंखला के आज के अंक में हम आपसे आसावरी
थाट पर चर्चा करेंगे और इस थाट के आश्रय राग आसावरी में निबद्ध
संगीतमार्तण्ड पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के स्वरों में एक रचना प्रस्तुत
करेंगे। साथ ही आसावरी थाट के अन्तर्गत वर्गीकृत राग अड़ाना के स्वरों में
निबद्ध एक फिल्मी गीत का उदाहरण उस्ताद अमीर खाँ की आवाज़ में प्रस्तुत
करेंगे।
वर्तमान
भारतीय संगीत में रागों के वर्गीकरण के लिए ‘थाट’ प्रणाली का प्रचलन है।
श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के अन्तर्गत अब तक हमने सात थाटों का
परिचय प्राप्त किया है। आज बारी है, आठवें थाट अर्थात ‘आसावरी’ की। इस थाट
का परिचय प्राप्त करने से पहले आइए प्राचीन काल में प्रचलित थाट प्रणाली की
कुछ चर्चा करते हैं। सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अन्तर्गत रागों का
वर्गीकरण प्रचलन में आ चुका था, जो उस समय के ग्रन्थ ‘संगीत-पारिजात’ और
‘राग-विबोध’ से स्पष्ट है। इसी काल में मेल की परिभाष देते हुए श्रीनिवास
ने बताया है कि राग की उत्पत्ति थाट से होती है और थाट के तीन रूप हो सकते
हैं- औडव (पाँच स्वर), षाड़व (छह स्वर), और सम्पूर्ण (सात स्वर)। सत्रहवीं
शताब्दी के अन्त तक थाटों की संख्या के विषय में विद्वानों में मतभेद भी
रहा है। ‘राग-विबोध’ के रचयिता ने थाटों की संख्या 23 वर्णित की है, तो
‘स्वर-मेल कलानिधि’ के प्रणेता 20 और ‘चतुर्दंडि-प्रकाशिका’ के लेखक ने 19
थाटों की चर्चा की है।
पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर |
राग आसावरी : ‘सजन घर लागे या साडेया...’ : पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर
आसावरी
थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ अन्य मुख्य राग हैं- जौनपुरी, देवगान्धार,
सिन्धु भैरवी, आभेरी, गान्धारी, देसी, कौशिक कान्हड़ा, दरबारी कान्हड़ा,
अड़ाना आदि। आज हम आपको राग अड़ाना में पिरोया एक फिल्मी गीत सुनवाएँगे। राग
अड़ाना, आसावरी थाट का राग है। यह षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग होता है,
जिसमें गान्धार और धैवत कोमल तथा दोनों निषाद का प्रयोग होता है। आरोह में
शुद्ध गान्धार और अवरोह में शुद्ध धैवत का प्रयोग वर्जित होता है। रात्रि
के तीसरे प्रहर में गाने-बजाने वाले राग अड़ाना का वादी स्वर षडज और संवादी
स्वर पंचम होता है।
उस्ताद अमीर खाँ |
राग अड़ाना : ‘झनक झनक पायल बाजे...’ : फिल्म झनक झनक पायल बाजे : उस्ताद अमीर खाँ और साथी
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 221वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको छः दशक से भी अधिक पुरानी एक
हिन्दी फिल्म के गीत का अंश एक उस्ताद गायक की आवाज में सुनवा रहे हैं।
इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने
हैं। पहेली क्रमांक 230 के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक
होंगे, उन्हें इस वर्ष की तीसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया
जाएगा।
1 – गीत के इस अंश में किस राग का आभास हो रहा है? राग का नाम बताइए।
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – यह भक्तिकाल की एक कवयित्री की रचना मानी जाती है। क्या आप उस कवयित्री को पहचान सकते हैं? यदि हाँ, तो उनका नाम बताइए।
आप इन प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 6 जून, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में
दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 223वें
अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग
अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम
सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 219वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको पुरानी बाँग्ला फिल्म
‘क्षुधित पाषाण’ के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो प्रश्न
के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग बागेश्री, दूसरे
प्रश्न का सही उत्तर है- मध्यलय तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है-
गायक उस्ताद अमीर खाँ। इस बार की पहेली में वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ.
किरीट छाया ने पहली बार संगीत पहेली में भाग लिया और एक प्रश्न का सही उत्तर
देकर एक अंक अर्जित कर लिया। हम उनका हार्दिक स्वागत करते हैं। इसके साथ ही
जबलपुर से क्षिति तिवारी और पेंसिलवेनिया, अमेरिका की विजया राजकोटिया और
हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने सही उत्तर दिया है। चारो प्रतिभागियों को
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन
दिनों हमारी लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ जारी है। अब यह
श्रृंखला समापन की ओर अग्रसर है। इसके बाद हमारी अगली श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु
के रागों’ पर केन्द्रित रहेगी। इस श्रृंखला के लिए आप अपने पसंद के गीत,
संगीत और राग की फरमाइश कर सकते हैं। अगले अंक में हम एक और थाट के साथ
उपस्थित होंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों,
श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों के अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते
हैं। प्राप्त सुझाव और फर्माइशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों
का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत
है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम
उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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