निर्देशक बी आर चोपडा पर विशेष व्यावसायिक दृष्टि से कहानियाँ चुनकर फिल्में बनाने वाले निर्देशकों से अलग सामाजिक सरोकारों को संबोधित करती हुई फिल्मों के माध्यम से समाज को एक संदेश मनोरंजनात्मक तरीके से कहने की कला बहुत कम निर्देशकों में देखने को मिली है. वी शांताराम ने अपनी फिल्मों से सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत की थी, आज के दौर में मधुर भंडारकर को हम इस श्रेणी में रख सकते हैं, पर एक नाम ऐसा भी है जिन्होंने जितनी भी फिल्में बनाई, उनकी हर फ़िल्म समाज में व्याप्त किसी समस्या पर न सिर्फ़ एक प्रश्न उठाती है, बल्कि उस समस्या का कोई न कोई समाधान भी पेश करती है. निर्देशक बी आर चोपडा ने अपनी हर फ़िल्म को भरपूर रिसर्च के बाद बनाया और कहानी को इतने दिलचस्प अंदाज़ में बयां किया हर बार, कि एक पल के लिए देखने वालों के लिए फ़िल्म का कसाव नही टूटता. चाहे बात हो अवैध रिश्तों की (गुमराह), या बलात्कार की शिकार हुई औरत की (इन्साफ का तराजू), मुस्लिम वैवाहिक नियमों पर टिपण्णी हो (निकाह), या वैश्यावृति में फंसी औरतों का मानसिक चित्रण (साधना), या हो एक विधवा के पुनर्विवाह जैसा संवेदनशील विषय (एक ही रास्ता),अपन...