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ई मेल के बहाने यादों के खजाने लेकर हम लौटे हैं इंदु जी के साथ जो है एक प्यारी माँ हम सब की

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, स्वागत है शनिवार के इस साप्ताहिक विशेषांक में। आज बारी 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' की। आज बहुत दिनों के बाद हमारी प्रिय इंदु जी का ईमेल इसमें शामिल हो रहा है। आप में से बहुत से पाठकों को शायद याद होगा कि इंदु जी के एक पहले के ईमेल में उन्होंने एक बच्चे के बारे में बताया था। हम आप से यही गुज़ारिश करेंगे कि अगर आप ने उस समय उस ईमेल को नहीं पढ़ा था तो पहले यहाँ क्लिक कर उसे पढ़ के दुबारा यहीं पे वापस आइए। तो आज के ईमेल में भी इंदु जी ने उसी बच्चे के बारे में कुछ और बातें हमें बता रही हैं। जिस तरह से पिछले ईमेल ने हमारी आँखों को नम कर दिया था, आज के ईमेल को पढ़ कर भी शायद आलम कुछ वैसा ही होगा। आइए इंदु जी का ईमेल पढ़ा जाये! ************************************** प्रिय सजीव और सुजॊय, प्यार! तुमने (आपने नही लिखूंगी सोरी न) कहा मैं अपनी पसंद का गाना बताऊँ तुम सुनोगे, सुनाओगे। हंसी तो नही उडाओगे न कि ये हरदम ........?????? मैंने एक बार बताया था न एक बच्चे के बारे में? नन्नू बुलाती थी मैं उसे; नन्हू से नन्नू बन गया था वो हम सबका। अपने से दूर क

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (१०) - ऐसीच हूँ मैं कहकर इंदु जी जीत लेती हैं सबका दिल

'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। "आज है २ अक्तुबर का दिन, आज का दिन है बड़ा महान, आज के दिन दो फूल खिले हैं, जिनसे महका हिंदुस्तान, नाम एक का बापू गांधी और एक लाल बहादुर है, एक का नारा अमन एक का जय जवान जय किसान"। समूचे 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और महान नेता लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती पर स्नेह नमन अर्पित करते हुए आज का यह अंक शुरु कर रहे हैं। 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने', दोस्तों, यह 'आवाज़' का एक ऐसा साप्ताहिक स्तंभ है जिसमें हम आप ही की बातें करते हैं जो आप ने हमें ईमेल के माध्यम से लिख भेजा है। यह सिलसिला पिछले १० हफ़्तों से जारी है और हर हफ़्ते हम आप ही में से किसी दोस्त के ईमेल को शामिल कर आपके भेजे हुए यादों को पूरी दुनिया के साथ बाँट रहे हैं। आज के अंक के लिए हम चुन लाये हैं हमारी प्यारी इंदु जी का ईमेल और उनकी पसंद का एक निहायती ख़ूबसूरत गीत। आइए अब आगे का हाल इंदु जी से ही जानें। ********************************************************** कुछ बड़े प्यारे गाने हैं, ज

ओल्ड इस गोल्ड - ई मेल के बहाने यादों के खजाने - ०२

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस साप्ताहिक विशेषांक में आज दूसरी बार हमारी और आपकी मुलाक़ात हो रही है। आज की कड़ी के लिए हमने चुना है हमारी अतिपरिचित और प्यारी दोस्त इंदु पुरी गोस्वामी जी की फ़रमाइश का एक गीत। जी हाँ, वो ही इंदु जी जिनकी बातें हमारे होठों पर हमेशा मुस्कुराहट ले आती है। क्या ख़ूब तरीका है उनका 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के पहेलियों का पहेली के ही रूप में जवाब देने का! लेकिन आज वो ईमेल के बहाने जो गीत हमें सुनवा रही हैं और इस गीत से जुड़ी जो यादें हमारे साथ बांट रही हैं, वो थोड़ा सा संजीदा भी है और ग़मज़दा भी। दरअसल बात ऐसी थी कि बहुत दिनों से ही इंदु जी ने हमसे इस गीत को सुनवाने का अनुरोध एकाधिक बार किया था। लेकिन किसी ना किसी वजह से हम इसे सुनवा नहीं सके। कोई ऐसी शृंखला भी नहीं हुई जिसमें यह गीत फ़िट बैठता। और शायद इसलिए भी क्योंकि अब तक हमें यह नहीं मालूम था कि इंदु जी को यह गीत पसंद किसलिए है। अगर पता होता तो शायद अब तक हम इसे बजा चुके होते। ख़ैर, देर से ही सही, हम तो अब जान गए इस ग