आलेख प्राप्ति समय- 18 Sep 2008 12:33 "आज सुबह एक माँ की गुजारिश थी, अखबार में कि मेरा बेटा बेक़सूर है, अगर उसका गुनाह साबित हो जाय, तो सरेबाजार उसे फांसी दे दीजिये " वक्त आ गया है, हमे सोचने का कि हम किस राह चल दिए हैं? सभी मुसलमान परिवारों का कैसा रमजान है? और कैसी ईद?कितने मासूम,बेक़सूर और कितने वेवजह इस घटना के शिकार होंगे|कितनी बहने अपने भाई की रिहाई के लिया नमाज अदा कर रही होंगी, रोज एक- एक दिन बड़े होते देख अपनी औलादों को माँ बाप फूले न समाते थे, उनके घरों में कितने दिनों से दिया न जला होगा | अब वक्त आ गया है,हम अपने सभी हिंदू व् मुसलमान भाई को कि एक हो जाय,यह दिखा दे दुनिया वालों को कि कोई लाख चाहे तो भी हमारा कुछ नही बिगाड़ सकता है हम सब एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे | इस दुआ के साथ - हर एक घर में दिया भी जले, अनाज भी हो , अगर न हो कोई ऐसा तो एहतजाज* भी हो। हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं, हुकूमतें जो बदलता है, वो समाज भी हो। रहेगी कब तलक वादों में कैद खुशहाली, हर एक बार ही कल क्यों, कभी तो आज भी हो। न करते शोर-शराबा तो और क्या करते , तुम्हारे शहर में कुछ कामकाज...