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अपने दिल में जगह दीजिए....गुजारिश की उषा खन्ना ने और उनके गीतों को सर आँखों पे बिठाया श्रोताओं ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 616/2010/316 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की इस नए सप्ताह में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इन दिनों इस स्तंभ में जारी है ८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को ध्यान में रखते हुए हमारी लघु शृंखला 'कोमल है कमज़ोर नहीं'। पिछले पाँच अंकों में हमनें पाँच ऐसे महिला कलाकारों से आपका परिचय करवाया जिन्होंने हिंदी सिनेमा के पहले दौर में अपनी महत्वपूर्ण योगदान से महिलाओं के लिए इन विधाओं में आने का रास्ता आसान बनाया था। जद्दनबाई, दुर्गा खोटे, देविका रानी, सरस्वती देवी और कानन देवी के बाद आज हम जिस महिला शिल्पी से आपका परिचय करवाने जा रहे हैं, वो एक ऐसी संगीतकार हैं जो महिला संगीतकारों में सब से ज़्यादा मशहूर हुईं और सब से ज़्यादा लोकप्रिय गीत जनता को दिए। हम बात कर रहे हैं उषा खन्ना की। और लोकप्रियता उषा जी ने अपनी पहली ही फ़िल्म से हासिल कर ली थी। एस. मुखर्जी ने उनके संगीत के प्रति लगाव को देख कर अपनी फ़िल्म 'दिल देके देखो' के संगीत का उत्तरदायित्व उन्हें दे दिया, और इस तरह से गायिका उषा खन्ना बन गईं संगीत निर्देशिका उषा खन्ना। पढ़िये उषा जी के शब्दों में उ

गिनती की हैं इंडस्ट्री में महिला संगीतकार पर उनमें एक खास मुकाम रखती हैं उषा खन्ना

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १० युं तो आज महिलायें हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं, लेकिन जहाँ तक फ़िल्मों में संगीत देने या गीत लिखने का सवाल है, उसमें आज भी पुरुषों का ही बोलबाला है। लेकिन फ़िल्म संगीत के इतिहास में कम से कम दो ऐसी महिला संगीतकारा हुईं हैं जिन्होने फ़िल्म संगीत में बहुत बड़ा योगदान दिया है, फ़िल्मी गीतों के ख़ज़ाने को समृद्ध किया है। एक तो थीं सरस्वती देवी जिन्होने बौम्बे टाकीज़ की बहुत सारी फ़िल्मों में बहुत ही कामयाब संगीत दिया, और दूसरी हैं उषा खन्ना, जिन्होने ६०, ७० और ८० के दशकों में बहुत सारी फ़िल्मों में बहुत ही उम्दा संगीत दिया है। आम तौर पर हम इन दो महिला संगीतकारों के नाम जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि सरस्वती देवी से भी पहले जड्डन बाई (अभिनेत्री नरगिस की माँ) एक संगीतकारा रह चुकीं हैं, जिन्होने सन् १९३५ में 'तलाश-ए-हक़' नामक फ़िल्म में संगीत दिया था! बहरहाल, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम उषा खन्ना जी का स्वरबद्ध किया हुआ एक बेहद ख़ूबसूरत गीत आपको सुनवाने जा रहे हैं। अजी ख़ूबसूरत क्या, एक थिरकता मचलता नग़मा फ़िल्म 'दिल देके देखो' से

मेरी दास्ताँ मुझे ही मेरा दिल सुना के रोये कभी ...उषा खन्ना के संगीत में उभरा लता का दर्द

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 321/2010/21 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर आज से एक बार फिर से छा रहा है फ़रमाइशी रंग। शरद तैलंग, स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा', पूर्वी, और पराग सांकला के बाद 'ओल्ड इज़ गोल्ड पहेली प्रतियोगिता' की विजेयता बनीं हैं हमारी इंदु जी। इसलिए आज से अगले पाँच दिनों तक हम सुनने जा रहे हैं इंदु जी की पसंद के पाँच गानें बिल्कुल बैक टू बैक। यकीन मानिए दोस्तों, कि इंदु जी ने ऐसे ऐसे नायाब गानें चुन कर हमें भेजे हैं कि इन्हे सुनवाते हुए हम जितना आनंद महसूस कर रहे हैं उतना ही मज़ा हमें आया इन गीतों पर आलेख लिखते हुए। तो शुरुआत करते हैं लता मंगेशकर के गाए फ़िल्म 'आओ प्यार करें' के एक बड़े ही ख़ूबसूरत गाने से, जिसके बोल हैं "मेरी दास्ताँ मुझे ही मेरा दिल सुना के रोये"। गीतकार राजेन्द्र कृष्ण के बोल और संगीतकार उषा खन्ना की तर्ज़। उषा जी के स्वरबद्ध किए उत्कृष्ट रचनाओं में से एक है आज का प्रस्तुत गीत। इस फ़िल्म के बारे में हम अभी बात करेंगे, लेकिन उससे पहले इंदु जी के चार शब्द भी जान लें कि इस गीत की उन्होने फ़रमाइश क्यों की हैं। इंदु जी लिखती हैं कि &qu

छोडो कल की बातें कल की बात पुरानी....जय विज्ञान है युवा हिन्दुस्तान का नया नारा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 173 स्व तंत्रता दिवस के उपलक्ष पर तिरंगे के तीन रगों से रंगे तीन गानें आप इन दिनों सुन रहे हैं बैक टू बैक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल पर। कल गेरुआ रंग यानी कि वीर रस पर आधारित गीत आप ने सुना, आज का रंग है सफ़ेद, यानी कि शांति, अमन, भाईचारे और प्रगति की बातें। दोस्तों, जब देश भक्ति गीतों की बात आती है तो हम ने अक्सर यह देखा है कि गीतकार ज़्यादातर हमारे इतिहास में से चुन चुन कर देश भक्ति के उदाहरण खोज लाते हैं और हमारे देश की गौरव गाथा का बखान करते हैं। बहुत कम ही गीत ऐसे हैं जिनमें देश के नवनिर्माण, प्रगति और देश के भविष्य के विकास की ओर झाँका गया हो। जैसा कि हमने कहा कि हमारा आज का रंग है सफ़ेद, यानी कि शांति का। और देश में शांत वातावरण तब ही पैदा हो सकते हैं जब हर एक देशवासी को दो वक़्त की रोटी नसीब हो, पहनने के लिए कपड़े नसीब हो, घर नसीब हो। इन सब का सीधा ताल्लुख़ देश के विकास और प्रगति पर निर्भर करता है। ऐसे ही विचारों को गीत के शक्ल में पिरोया है गीतकार प्रेम धवन ने फ़िल्म 'हम हिंदुस्तानी' के उस मशहूर गीत में जिसे आज हम आप के लिए लेकर आये हैं

मैंने रखा है मोहब्बत अपने अफसाने का नाम...तासीर रफी साहब के आवाज़ की

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 132 यूँ तो आज महिलायें हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं, लेकिन जहाँ तक फ़िल्मों में संगीत देने या गीत लिखने का सवाल है, उसमें आज भी पुरुषों का ही बोलबाला है। लेकिन फ़िल्म संगीत के इतिहास में कम से कम दो ऐसी महिला संगीतकारा हुईं हैं जिन्होने फ़िल्म संगीत में बहुत बड़ा योगदान दिया है, फ़िल्मी गीतों के ख़ज़ाने को समृद्ध किया है। एक तो थीं सरस्वती देवी जिन्होने बौम्बे टाकीज़ की बहुत सारी फ़िल्मों में बहुत ही कामयाब संगीत दिया,और दूसरी हैं उषा खन्ना, जिन्होने ६०, ७० और ८० के दशकों में बहुत सारी फ़िल्मों में बहुत ही उम्दा संगीत दिया है। आम तौर पर हम इन दो महिला संगीतकारों के नाम जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि सरस्वती देवी से भी पहले जड्डन बाई (अभिनेत्री नरगिस की माँ) एक संगीतकारा रह चुकीं हैं, जिन्होने सन् १९३५ में 'तलाश-ए-हक़' नामक फ़िल्म में संगीत दिया था! बहरहाल, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम उषा खन्ना जी का स्वरबद्ध किया हुआ एक बेहद ख़ूबसूरत गीत आपको सुनवाने जा रहे हैं। १९६४ मे बनी फ़िल्म 'शबनम' का यह गीत है मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज़ मे