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स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 4

भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा-निर्माण के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ की एक नई कड़ी में आप सबका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, आज बारी है, ‘भूली-बिसरी यादें’ की, जिसके अन्तर्गत हम मूक और सवाक फिल्मों के आरम्भिक दौर की कुछ रोचक बातें आपसे बाँटेंगे। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले : सावे दादा की सृजनशीलता ‘रा जा हरिश्चन्द्र’ को प्रथम भारतीय मूक कथा-फिल्म माना जाता है। 1913 में इस फिल्म के निर्माण और प्रदर्शन से पहले जो प्रयास किए गए, हम इस स्तम्भ में उनकी चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंक में हमने वर्ष 1896 और 1898 में किए गए प्रयासों का उल्लेख किया था। इसके बाद 1899 में हरिश्चन्द्र सखाराम भटवाडेकर उर्फ सावे दादा ने इंग्लैंड से एक फिल्म-कैमरा मंगाया और अखाड़े में दो पहलवानों के बीच कुश्ती का फिल्मांकन किया। मुम्बई के हैंगिंग गार्डेन में कुश्ती का यह आयोजन कृष्ण नहवी और पुंडलीक नामक दो पहलवानों के बीच किया गया था। सावे दादा ने इसी कैमरे से ‘मैन ऐंड मंकी’ नामक एक लघु फिल्म भी बनाई, जिसका प्रदर्शन पेरी थियेटर में किया गया था। सावे दादा ने सिनेमा को मनोरं...