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उठे सबके कदम....चूमने जीवन की छोटी छोटी खुशियों को


इस गीत का फ़िल्मांकन देखने के बाद सही में यह सवाल मन में उभरता है कि क्या ज़िंदगी में ख़ुश रहने के लिए बहुत बड़ी-बड़ी महंगी-महंगी चीज़ों का होना ज़रूरी है? अगर हम इन "बड़ी" ख़ुशियों को तलाशने लग जायेंगे तो शायद ख़ुशियाँ ही हमसे दूर होती चली जायें।

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 816/2011/256

'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता/पाठकों को क्रिसमस की ढेरों शुभकामनाएँ। आज बड़ा ही पावन दिन है, सर्दियाँ भी ज़ोर पकड़ रही हैं पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरे उत्तरी गोलार्ध में, और ऐसे में अगर शरीर में गरमाहट बनाए रखनी है तो एक अच्छा उपाय है नृत्य। जी हाँ, नृत्य एक तरह का व्यायाम ही तो है, जो पूरे शरीर में स्फ़ूर्ती पैदा करती है, दिलो दिमाग़ में ताज़गी भरती है। और जहाँ तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की बात है, तो इन दिनों हम शृंखला भी ऐसी पेश कर रहे हैं जिसमें वो गानें बजाए जा रहे हैं जिनमें आशावादी विचारों के साथ-साथ थिरकन भी है, मचलता संगीत भी है, जिनके साथ आप कुछ देर के लिए झूम भी सकते हैं, ख़ुश हो सकते हैं। आज क्रिसमस के दिन के लिए हमने जिस गीत को चुना है, वह है फ़िल्म 'बातों बातों में' का लता मंगेशकर, अमित कुमार और पर्ल पदमसी का गाया मशहूर गीत "उठे सबके क़दम देखो रम पम पम, आज ऐसे गीत गाया करो, कभी ख़ुशी कभी ग़म त र रम पम पम हँसो और हँसाया करो"। अमित खन्ना के बोल और एक बार फिर राजेश रोशन का संगीत। यह गीत फ़िल्माया गया है पर्ल पदमसी, लीला मिश्र, टिना मुनीम, अमोल पालेकर और रणजीत चौधरी पर। पर मज़े की बात यह है कि जहाँ लता जी नें टिना मुनीम और पर्ल पदमसी का प्लेबैक दिया है, वहीं पर्ल पदमसी नें लीला मिश्र के लिए पार्श्वगायन किया है। है न मज़ेदार बात! और अमित कुमार नें भी अमोल पालेकर और रणजीत, दोनों के लिए गाया है।

'बातों बातों में' बासु चटर्जी की रोमांटिक कॉमेडी फ़िल्म थी। बासु दा एक ऐसे फ़िल्मकार रहे जिन्होंने मध्यमवर्गीय परिवारों को बहुत ही ख़ूबी से पर्दे पर साकार किया, बिल्कुल उसी रूप में जिस रूप में हम अपने आस-पड़ोस या अपनी ख़ुद की ज़िन्दगी में देखते हैं। ये फ़िल्में भले बॉक्स ऑफ़िस पर ज़्यादा असरदार नहीं हुए, पर लोगों नें इन्हें हाथों-हाथ ग्रहण किया। दोस्तों, इस गीत का फ़िल्मांकन देखने के बाद सही में यह सवाल मन में उभरता है कि क्या ज़िंदगी में ख़ुश रहने के लिए बहुत बड़ी-बड़ी महंगी-महंगी चीज़ों का होना ज़रूरी है? अगर हम इन "बड़ी" ख़ुशियों को तलाशने लग जायेंगे तो शायद ख़ुशियाँ ही हमसे दूर होती चली जायें। वो लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें ज़िन्दगी की छोटी-छोटी ख़ुशियाँ, छोटे-छोटे सुख मिलते हैं, और यकीन मानिये ये छोटी-छोटी ख़ुशियाँ ही जीवन को सुन्दर बनाती हैं। इस गीत में भी असली ज़िन्दगी के किरदार नज़र आते हैं जो बहुत ज़्यादा मिट्टी से, हक़ीक़त से जुड़े हुए लगते हैं। ये किरदार अपने लिविंग रूम में ही गीत गाते, नृत्य करते नज़र आते हैं; जेनरेशन गैप भी महसूस करवाया गया है गीत में जब नानी माँ गाती हैं कि "रूप नया है रंग नया है, जीने का तो जाने कहाँ ढंग गया है", और इसके जवाब में नई पीढ़ी कहती है कि "किसे है फ़िकर, किसे क्या पसन्द"। बड़ा ही ख़ुशनुमा गीत है जो यकीनन आपको भी ख़ुश कर देगा, तो फिर देर किस बात की, सुनिए और झूमिए...



मित्रों, ये आपके इस प्रिय कार्यक्रम "ओल्ड इस गोल्ड" की अंतिम शृंखला है, ८०० से भी अधिक एपिसोडों तक चले इस यादगार सफर में हमें आप सबका जी भर प्यार मिला, सच कहें तो आपका ये प्यार ही हमारी प्रेरणा बना और हम इस मुश्किल काम को इस अंजाम तक पहुंचा पाये. बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें हम सदा अपनी यादों में सहेज कर रखेंगें. पहले एपिसोड्स से लेकर अब तक कई साथी हमसे जुड़े कुछ बिछड़े भी पर कारवाँ कभी नहीं रुका, पहेलियाँ भी चली और कभी ऐसा नहीं हुआ कि हमें विजेता नहीं मिला हो. इस अंतिम शृंखला में हम अपने सभी नए पुराने साथियों से ये गुजारिश करेंगें कि वो भी इस श्रृखला से जुडी अपनी कुछ यादें हम सब के साथ शेयर करें....हमें वास्तव में अच्छा लगेगा, आप सब के लिखे हुए एक एक शब्द हम संभाल संभाल कर रखेंगें, ये वादा है.

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9811036346 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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