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फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी–८

स्वरगोष्ठी – ९७ में आज मान-मनुहार की ठुमरी : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हम कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें पूरा मान-सम्मान देते हुए फिल्मों में शामिल किया गया और इन ठुमरियों को भरपूर लोकप्रियता भी मिली। ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला के अन्तर्गत अब तक आपने जो भी पारम्परिक ठुमरियाँ और उनके फिल्मों सहित अन्य अनुप्रयोगों का रसास्वादन किया है, उनमें रागों की समानता थी, अर्थात, मूल ठुमरी जिस राग में थी, अन्य अनुप्रयोग भी उसी राग में बँधे हुए थे। परन्तु आज के अंक में हमने जिस ठुमरी का चयन किया है, वह मूल पारम्परिक ठुमरी तो राग भैरवी में निबद्ध है, किन्तु उसी ठुमरी के परवर्ती प्रयोग के राग भिन्न-भिन्न हैं। यहाँ तक कि उसी ठुमरी के फिल्मी प्रयोग में भी राग बदला हुआ है। हमारी आज की ठुमरी है- ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ साँवरिया...’। इस ठुमरी को सुप्रसिद्ध गायिका रसूलन बाई ने भैरवी में गाया है। मान-मनुहार की इस श्रृंगारप्रधान ठुमरी को सुनने से पहले पूरब अंग की ठुमरियों की कुछ विशेषताओं के बारे में ...

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ५

स्वरगोष्ठी – ९४ में आज ‘कौन गली गयो श्याम...’ : श्रृंगार और भक्ति का अनूठा समागम ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ की आज पाँचवीं कड़ी है। इस श्रृंखला में हम आपके लिए कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें फिल्मों में भी शामिल किया गया। ऐसी ठुमरियों का पारम्परिक और फिल्मी, दोनों रूप आप सुन रहे हैं। आज के अंक में हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, खमाज की एक बेहद लोकप्रिय ठुमरी- ‘कौन गली गयो श्याम...’। आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करते हुए, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आरम्भ करता हूँ, ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला का नया अंक। ह मारी आज की पारम्परिक ठुमरी राग खमाज की है, जिसके स्थायी के बोल हैं- ‘कौन गली गयो श्याम...’ । इस ठुमरी को कई गायक-गायिकाओं ने गाया है। इनमें से आज के अंक में हम विदुषी रसूलन बाई, डॉ. प्रभा अत्रे, पण्डित छन्नूलाल मिश्र और विदुषी परवीन सुलताना के स्वरों में यह ठुमरी प्रस्तुत करेंगे। पिछले अंक में भी हमने रसूलन बाई के स्वर में एक अन्य ठुमरी प्रस्तु...