जब दो कलाकार एक दूसरे के प्रर्याय बन जाते हैं तो कई मायनों में एक दुसरे की परछाई की तरह लगने लगते हैं। जिस तरह दो घनिष्ठ दोस्तों की जोडी में से एक को देखते ही दूसरे की ही याद आ जाये, ठीक उसी तरह जब हम शम्मी कपूर के गानों को सुनते हैं तो मोहम्मद रफी बरबस ही याद आते हैं और जब मोहम्मद रफी के चुलबुलेपन से सनी हुई आवाज को सुनते हैं तो सबसे पहले हमें शम्मी कपूर की अदायें ही याद आती हैं। एक अच्छे दोस्त की यही तो पहचान है कि वह अपने दोस्त के अनुसार खुद को ढाल ले। शम्मी के शोख व्यक्तित्व के अनुसार ही उन्हीं की तरह की शोखी मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज में भरी और उनके गीतों को अलग अंदाज दिया। एक समय था जब लगातार चौदह फ्लाप फिल्में दे कर शम्मी कपूर की गिनती एक असफल कलाकार के रुप में की जाने लगी थी। उनकें फिल्मी कैरियर में बेहतरीन मोड उस वक्त आया जब नासिर हुसैन की फिल्म "तुमसा नहीं देखा" आई जिसमें उनका चुलबुला अंदाज और उसमें मोहम्मद रफी के गाये हुये गीत बेहद प्रसिद्द हुए जो आज तक भी संगीत प्रेमियों की पसंद बने हुये हैं, उसके बाद तो मोहम्मद रफी शम्मी कपूर की ही आवाज बन गये थे । १९६० का वह दौर...