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दिल एक फूल है इसे खिलने भी दीजिए......पेश है एक जोड़ी कमाल की

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #२२ य ह कोई फ़िल्मी किस्सा नहीं है, ना हीं किसी लैला-मजनू, हीर-रांझा की दास्तां, लेकिन जो भी है, इन-सा होकर भी इनसे अलहदा है। सुदूर पश्चिम का "मुंडा" और हजारों कोस दूर पूरब की एक "कुड़ी" , वैसे "कुड़ी" तो नहीं कहना चाहिए क्योंकि यह एक पंजाबी शब्द है और लड़की ठहरी बंगाली, लेकिन क्या करूँ मेरा "बांग्ला" का अल्प-ज्ञान मुझे सही शब्द मुहैया नहीं करा रहा, इसलिए सोचा कि जिस तरह उस फ़नकारा ने शादी के बाद अपना "बंगाली उपनाम" त्याग कर "पंजाबी उपनाम" स्वीकार कर लिया, उसी तरह उसने "कुड़ी" होना भी स्वीकार कर लिया होगा, इसलिए "कुड़ी" कहने में कोई बुराई नहीं है।हाँ तो बात की शुरूआत "पंजाब" से करते हैं। "गेहूँ और धान" की लहलहाती फ़सलों के बीच ६ फ़रवरी १९४० में अमृतसर में जन्मे इस फ़नकार की शुरूआती तालीम अपने पिता प्रोफ़ेसर नाथा सिंह से हुई थी, जो खुद एक प्रशिक्षित गायक और संगीतकार थे। वहीं हमारी फ़नकारा ने "बांग्लादेश" की एक संगीतमय परिवार में जन्म लिया था, जन्म से थी तो वो ...