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प्रातःकाल के राग : SWARGOSHTHI – 232 : MORNING RAGA

स्वरगोष्ठी – 232 में आज रागों का समय प्रबन्धन – 1 : दिन के प्रथम प्रहर के राग ‘जग उजियारा छाए, मन का अँधेरा जाए...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हम एक नई श्रृंखला- ‘रागों का समय प्रबन्धन’ आरम्भ कर रहे हैं। श्रृंखला की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सू

नये वर्ष में नई लघु श्रृंखला ‘राग और प्रहर’ की शुरुआत

स्वरगोष्ठी – 103 में आज राग और प्रहर – 1 'जागो मोहन प्यारे...' राग भैरव से आरम्भ दिन का पहला प्रहर   ‘स्वरगोष्ठी’ के नये वर्ष के पहले अंक में कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमी पाठकों और श्रोताओं का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। आज से हम आरम्भ कर रहे हैं, एक नई लघु श्रृंखला- ‘राग और प्रहर’। भारतीय शास्त्रीय संगीत, विशेषतः उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। इस श्रृंखला में हम आपसे राग और समय के अन्तर्सम्बन्धों पर आपसे चर्चा करेंगे। सूर्योदय : छायाकार -नारायण द्रविड़ का ल-गणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर, दिन के और सूर्यास्त से लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर, रात्रि के प्रहर कहलाते हैं। उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध प्रहर में अलग-अलग रागों का पर