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आवाज़ दे कहाँ है...ओल्ड इस गोल्ड में पहली बार बातें गायक/अभिनेता सुरेन्द्र की

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 347/2010/47 ४० का दशक हमारे देश के इतिहास में राष्ट्रीय जागरण के दशक के रूप में याद किया जाता है। राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से इस दौर ने इस देश पर काफ़ी असरदार तरीके से प्रभाव डाला था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होते ही फ़िल्म निर्माण पर लगी रोक को उठा लिया गया जिसके चलते फ़िल्म निर्माण कार्य ने एक बार फिर से रफ़्तार पकड़ ली और १९४६ के साल में कुल १५५ हिंदी फ़िल्मों का निर्माण किया गया। लेकिन सही मायने में जिन दो फ़िल्मों ने बॊक्स ऒफ़िस पर झंडे गाढ़े, वो थे 'अनमोल घड़ी' और 'शाहजहाँ'। एक में नूरजहाँ - सुरैय्या, तो दूसरे में के. एल. सहगल। लेकिन दोनों फ़िल्मों के संगीतकार नौशाद साहब। वैसे हमने इन दोनों ही फ़िल्मों के गानें 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बजाए हैं, लेकिन जब इस साल का प्रतिनिधित्व करने वाले किसी गीत को चुनने की बात आती है तो इन्ही दो फ़िल्मों के नाम ज़हन में आते हैं, और आने भी चाहिए। क्योंकि हमने 'शाहजहाँ' फ़िल्म के दो गीत सुनवाएँ हैं, तथा सहगल साहब और इस फ़िल्म से जुड़ी तमाम बातें भी बता चुके हैं, तो क्यों ना आज फ़िल्म...