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गाइए गणपति जगवंदन- पारूल की पेशकश

सुनिए सिद्धि विनायक गणपति बप्पा की वंदना आज गणेश चतुर्थी है, पूरे देश में इस त्योहार की धूम है। कोई नये कपड़े खरीद रहा होगा तो कोई अपने परिजनों के लिए नये-नये उपहार। हलवाई की दुकान पर भीड़ होगी तो गणेश के मंदिर में हुजूम। आवाज़ के मंच पर तो कुछ संगीतमयी होना चाहिए। इसीलिए हम लेकर आये हैं एक संगीतबद्ध भजन जिसे पेश कर रही हैं बोकारो से पारूल। यह भजन पारूल द्वारा तानपुरा (तानपूरा) पर संगीतबद्ध है। सुनिए और खो जाइए भक्ति-संगीत में। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार बुद्धि के देवता श्री गणपति का जन्मोत्सव हम सब भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को आनन्द व उल्लास के साथ विभिन्न तरीकों से मनाते हैं। अलग-अलग प्रांतों में इस पावन पर्व की महिमा विविध रंगों में दिखायी पड़ती है। भारत में गणेशोत्सव की धूम सबसे अधिक माहारा्ष्ट्र प्रान्त में गूँजती है। यहाँ गणपति बप्पा की मूर्ति की स्थापना से प्रारम्भ होकर दस दिनों तक यह त्यौहार जन-जन को भक्ति रस में सरोबार करने के बाद, अनंत चतुर्दशी को मूर्ति विसर्जन के साथ संपन्न होता है। गणेश चतुर्थी की हमारे स्वतंत्रता संग्राम में अहम् भूमिका रही है. यह त्यौहार सन १८९३ से

मासिक टॉप 10 पन्ने

पाठकों का रूख क्या है? यह जानने के लिए यह टेबल उपयोगी है। हम डायरेक्ट विजीट के आधार पर प्रत्येक माह के शीर्ष १० पोस्टों को प्रदर्शित कर रहे हैं। आवाज़ पर जुलाई २००८ के टॉप १० पन्ने Rank Page Title Direct Visits Total Page Views 1 बढ़े चलो 452 818 2 संगीत दिलों का उत्सव है 404 772 3 आवारादिल 400 583 4 तेरे चेहरे पे 263 422 5 अलविदा इश्मित 158 179 6 पॉडकास्ट कवि सम्मेलन 155 210 7 सीखिए गायकी के गुर 130 160 8 मानसी का साक्षात्कर 107 172 9 नैना बरसे रिमझिम-रिमझिम 98 163 10 झूमो रे दरवेश 76 118 Stats from 1 July 2008 to 31 July 2008 Source: FeedBurner आवाज़ पर अगस्त २००८ के टॉप १० पन्ने Rank Page Title Direct Visits Total Page Views 1 मैं नदी 366 612 2 मेरे सरकार 265 410 3 चले जाना 263 448 4 जीत के गीत 225 452 5 बे-इंतहा 170 312 6 ऑनलाइन काव्यपाठ और अभिनय का मौका 140 208 7 आसाम के लोकसंगीत का ज़ादू 132 170 8 वो खंडवा का शरारती छोरा 130 199 9 सूफी संगीत भाग दो 112 151 10 लौट चलो पाँव पड़ूँ तोरे श्याम 83 124 Stats from 1 August 2008 to 31 August 2008 Source: FeedBurner आवाज़ पर सितम्बर २००८

अब तक के संगीतबद्ध गीत सुनें

हिन्द-युग्म पर अब तक के रीलिज्ड सभी गीतों को आप यहाँ सुन सकते हैं। हम अलग-अलग प्लेयरों में अलग-अलग तरीके से गीत सुनने का विकल्प दे रहे हैं। नीचे के विकल्पों से अपने पसंद का नेवीगेशन चुनें सभी गीत जुलाई 2008 रीलिज अगस्त 2008 रीलिज 4 जुलाई 2008 से लेकर अब तक के रीलिज्ड गीत जुलाई 2008 के रीलिज्ड गीत अगस्त 2008 के रीलिज्ड गीत

दर्द को सुरीलेपन की पराकाष्ठा पर ले जाने वाले अमर गायक मुकेश

आज सुबह आपने पढ़ा हृदयनाथ मंगेशकर का संस्मरण ' वो जाने वाले हो सके तो॰॰॰॰ ' आज हम पूरे दिन मुकेश को याद कर रहे हैं, उनके गाये गीत सुनवाकर, उनसी जुड़ी यादें बाँटकर॰॰॰॰आगे पढ़िए तपन शर्मा 'चिंतक' की प्रस्तुति ' मैं तो दीवाना, दीवाना, दीवाना ' मुकेश के साथ कल्याण जी चित्र साभार- हमाराफोटोज वे परिश्रम से कभी गुरेज़ नहीं करते थे. कितनी ही बार री-टेक करो,उन्हें नाराज़ी नहीं होती.कितनी ही बार रिहर्सल के लिये कॉल करो वे तैयार..बस अभी आया.उन्हें अपने परफ़ॉरमेंस से जल्द सेटिसफ़ेक्शन नहीं होता था. बता रहे थे ख्यात संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के स्व.कल्याणजी भाई. नब्बे के दशक में जब वे लता पुरस्कार लेने इन्दौर आए तो दो दिन का डेरा था मेरे शहर. आयोजन का एंकर होने की वजह से हमेशा से कलाकारों का संगसाथ आसानी से मिलता रहा है सो कल्याणजी भाई से लम्बी बात करने का मौक़ा भी मिल ही गया. एक दिन उनके संगीत सफ़र की चर्चा होती रही, दूसरे दिन गायक-गायिकाओं पर. जब मुकेशजी पर बात आई तो कल्याणजी भाई भावुक हो उठे. मुकेशजी के घर में गुजराती परिवेश भी रहा क्योंकि पत्नी सरल गुजराती थीं (अभी

ओ जाने वाले हो सके तो ....

हृदयनाथ मंगेशकर द्वारा लिखित संस्मरण हजारों गाने गानेवाले मुकेश दा के आखिरी शब्‍द थे – ‘यह पट्टा खोल दो’ खुशमिज़ाज मुकेश तीस हजार फुट की ऊँचाई पर हमारा जहाज उड़ा जा रहा है। रूई के गुच्‍छों जैसे अनगिनत सफेद बादल चारों ओर छाए हुए हुए हैं। ऊपर फीके नीले रंग का आसमान है। इन बादलों और नीले आकाश से बनी गुलाबी क्षितिज रेखा दूर तक चली गई है। कभी-कभी कोई बड़ा सा बादल का टुकड़ा यों सामने आ जाता है, माने कोई मजबूत किला हो। हवाई जहाज की कर्कश आवाज को अपने कानों में झेलते हुए मैं उदास मन से भगवान की इस लीला को देख रहा हूँ। अभी कल-परसों ही जिस व्‍यक्ति के साथ ताश खेलते हुए और अपने अगले कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाते हुए हमने विमान में सफर किया था, उसी अपने अतिप्रिय, आदरणीय मुकश दा का निर्जीव, चेतनाहीन, जड़ शरीर विमान के निचले भाग में रखकर हम लौट रहे हैं। उनकी याद में भर-भर आनेवाली ऑंखों को छिपाकर हम उनके पुत्र नितिन मुकेश को धीरज देते हुए भारत की ओर बढ़ रहे हैं। आज 29 अगस्‍त है। आज से ठीक एक महीना एक दिन पहले मुकेश दा यात्री बनकर विमान में बैठे थे। आज उसी देश को, जिसमें पिछले 25 वर्षों का एक दिन, एक घ

हमेशा लगता है, कि यह गीत और बेहतर हो सकता था....

दोस्तो, आवाज़ पर इस हफ्ते के "फीचर्ड कलाकार" है, युग्म के संगीत खजाने को पाँच गीतों से सजाने वाले ऋषि एस . संगीतकार ए आर रहमान के मुरीद, ऋषि हमेशा ये कोशिश करते हैं कि वो हर बार पहले से कुछ अलग करें. उनके हर गीत को अब तक युग्म के श्रोताओं ने सर आँखों पे बिठाया है, कभी मात्र शौकिया तौर पर वोइलिन बजाने वाले ऋषि, अब बतौर संगीतकार भी ख़ुद को महत्त्व देने लगे हैं, युग्म ने की ऋषि एस से एक ख़ास बातचीत. ( ऋषि मूल रूप से हिन्दी भाषी नही हैं, पर उन्होंने हिन्दी में अपने जवाब लिखने की कोशिश की है, तो हमने उनकी भाषा में बहुत अधिक संशोधन न करते हुए, यहाँ रखा है, ऋषि हिन्दी को शिखर पर देखने की, हिंद युग्म की मुहीम के पुरजोर समर्थक है, और युग्म के लिए वार्षिक अंशदान भी देते हैं ) हिंद युग्म - स्वागत है ऋषि, "मैं नदी..." आपका ५ वां गीत है, कैसे रहा अब तक का सफर युग्म के संगीत के साथ ? ऋषि -सबसे पहले मैं हिंद युग्म को शुक्रिया अदा करना चाहूँगा, मेरे जैसे "amateur" संगीतकारों को अपना "talent" प्रदर्शन करने का मौका दिया है. हर गाने का "feedback" पढ़कर न

कविता और संगीत से अव्वल, सुर को जिताने वाले मोहम्मद रफ़ी

अमर आवाज़ मोहम्मद रफ़ी को उनकी 28वीं बरसी पर याद कर रहे हैं संजय पटेल मेरा तो जो भी कदम है वो तेरी राह में है॰॰॰ जी हाँ, स्तम्भकार संजय पटेल ने अपने ज़िंदगी के बहुत से कदम रफ़ी की याद में बढ़ाये हैं। संयोग है कि हमारे लिये ये विशेष आलेख रचने वाले संजय भाई ने मोहम्मद रफ़ी की मृत्यु पर ही पहला लेख इन्दौर के एक प्रतिष्ठित दैनिक में लिखा था. संजय भाई रफ़ी साहब के अनन्य मुरीद हैं और इस महान गायक की पहली बरसी से आज तक 31 जुलाई के दिन रफ़ी साहब की याद में उपवास रखते हैं। प्रस्तुत संजय की श्रद्धाँजलि- रफ़ी एक ऐसी मेलोडी रचते थे कि मिश्री की मिठास शरमा जाए,सुनने वाले के कानों में मोगरे के फ़ूल झरने लगे,सुर जीत जाए और शब्द और कविता पीछे चली जाए. मेरी यह बात अतिरंजित लग सकती है आपको लेकिन रफ़ी साहब का भावलोक है ही ऐसा. आप जितना उसके पास जाएंगे आपको वह एक पाक़ साफ़ संसारी बना कर ही छोड़ेगा. मोहम्मद रफ़ी साहब को महज़ एक प्लै-बैक सिंगर कह कर हम वाक़ई एक बड़ी भूल करते हैं.दर असल वह महज़ एक आवाज़ नहीं;गायकी की पूरी रिवायत थे.सोचिये थे तो सही साठ साल से सुनी जा रही ये आवाज़ न जाने किस किस मेयार से गुज़री है. पंजाब के एक