महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१९ ऐ से कितने सारे गज़ल गायक होंगे जो यह दावा कर सकते हों कि उन्होंने भारत के राष्ट्रपति के सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। अगर इतना भी हो तो बहुत है, लेकिन अगर मैं यह पूछूँ कि किनका यह सौभाग्य रहा है कि उनके संगीत एलबम का विमोचन खुद भारत के प्रधानमंत्री ने किया हो , तो मुझे नहीं लगता कि आज के फ़नकार को छोड़कर और कोई होगा। यह समय और किस्मत का एक खेल हीं कहिए को जिनको खुदा ने धन नहीं दिया, उन्हें ऐसा बाकपन परोसा है कि सारी दुनिया बस इसी एक "तमगे" के लिए उनसे रश्क करती है, आखिर करे भी क्यों न, इस तमगे, इस सम्मान के सामने बाकियों की क्या बिसात! यह सन् ७६ की बात है, जब हमारे इन फ़नकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति "श्री फखरूद्दीन अली अहमद" के सामने अपनी गज़ल की तान छेड़ी थी। इस मुबारक घटना के छह साल बाद यानी कि १९८२ में इनके "रिकार्ड" को श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपने कर-कमलों से विमोचित किया था। सरकारी महकमों तक में अपनी छाप छोड़ने वाले इन फ़नकारों( दर-असल आज हम जिनकी बात कर रहे हैं, वे महज एक फ़नकार नही, बल्कि दो हैं, जी हाँ हम गायक-बंधुओं की ...