Taaza Sur Taal (TST) - 19/2011 - Mann Jaane दोस्तों, संगीत की विविधताओं से भरे इस देश में ये दुर्भाग्य ही है कि आज कल हमें संगीत के नाम पर केवल फिल्म संगीत ही सुनने को मिल रहा है. और बहुत से कारणों के चलते इसमें भी कोई विविधता नज़र नहीं आ रही है. यहाँ तक कि फिल्म संगीत के सबसे बुरे माने जाने वाले ८० के दशक में भी गैर फ़िल्मी ग़ज़लों की अल्बम्स एक अलग तरह के श्रोताओं की जरूरतें पूरी कर रहीं थी, और उस दौर के युवा श्रोताओं के लिए भी बहुत सी गैर फ़िल्मी अल्बम्स जो रोक्क्, पॉप, डिस्को, आदि जोनर का प्रतिनिधित्व कर रहीं थी, उपलब्ध थी. पर आज के इस दौर में तो लगता है, गैर फ़िल्मी संगीत लगभग गायब हो चुका है क्योंकि सबपर फिल्म संगीत हावी हो चुका है. ढेरों टेलंट की खोजों के नाम पर बहुत से नए कलाकारों को एक मंच तो दिया जा रहा है पर कितने इंडियन आइडल्स को हम आज सुन पा रहे हैं कुछ नया करते हुए. संगीत के इस सूखे दौर में फिल्मों से इतर जो संगीत की कोशिशें हो रही है उनको पर्याप्त प्रोत्साहन मिलना चाहिए, ताकि सचमुच ये तथाकथित नया टेलंट वाकई में कुछ नया करने की गुन्जायिश पैदा कर सके और श्रोताओं को भी कुछ