शिखा वार्ष्णेय से जब मैंने गीत मांगे, तो सुना और भूल गईं. छोटी बहन ने सोचा - अरे यह रश्मि दी की आदत है, कभी ये लिखो, वो दो, ये करो .... हुंह. मैंने भी रहने दिया. पर अचानक जब उसने समीर जी की पसंद को सुना तो बोली - मैं भी...मैं भी.... हाहा, कौन नहीं चाहेगा कि हमारी पसंद से निकले ५ गीतों को हमें चाहनेवाले सुनें! तो शिखा की बड़ी बड़ी बातों से अलग आकर इस बहुत जाननेवाली की पसंद सुनिए उसके शब्दों में लिपटे - रोज की आप धापी से कुछ लम्हें खुद के लिए बचाकर कर रख सर को नरम तकिये पर मूँद कर पलकों को कुछ पल सिर्फ एहसास के जब दरकार हों . यही गीत याद आते हैं. और सुकून दे जाते हैं. आप यूँ फासलों से गुजरते रहे मेरा कुछ सामान - (इजाजत) यह दिल और उनकी निगाहों के साये. होटों से छू लो तुम (प्रेम गीत) दिल तो है दिल .(मुकद्दर का सिकंदर.)