Skip to main content

Posts

Showing posts with the label 500th episode of old is gold

सिमटी हुई ये घड़ियाँ फिर से न बिखर जाएँ - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा बुझाने आया हूँ मैं, आपका दोस्त, सुजॉय चटर्जी

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए जब मैं संगीतकार तुषार भाटिया का इंटरव्यू कर रहा था अनिल बिस्वास जी से संबंधित, तो तुषार जी नें मुझसे कहा कि उनके पास एक एल.पी है अनिल दा के गीतों का, जिसे अनिल दा नें उन्हें भेंट किया था, और जिसके कवर पर अनिल दा नें बांगला में उनके लिए कुछ लिखा था, पर वो उसे पढ़ नहीं पाये; तो क्या मैं उसमें उनकी कुछ मदद कर सकता हूँ? मैंने हाँ में जवाब दिया। उस एल.पी कवर पर लिखा हुआ था "तुषार के सस्नेह आशीर्बादाने अनिल दा" (तुषार को सनेह आशीर्वाद के साथ, अनिल दा)। इस अनुवाद को भेजते हुए मैंने तुषार जी को लिखा था "Wowwww, what a privilege you have given me Tushar ji to translate something Anil da has written for you!!! cant ask for more."

बड़ी बेटी संगीता गुप्ता की यादों में पिता संगीतकार मदन मोहन

संगीता गुप्ता  मुझसे मेरे पिता के बारे में कुछ लिखने को कहा गया था। हालाँकि वो मेरे ख़यालों में और मेरे दिल में हमेशा रहते हैं, मैं उस बीते हुए ज़माने को याद करते हुए यादों की उन गलियारों से आज आपको ले चलती हूँ....

जागो मोहन प्यारे...राग भैरव पर आधारित ये अमर गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 744/2011/184 ‘द स थाट, दस राग और दस गीत’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में आपका पुनः स्वागत है। आपको मालूम ही है कि इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान में प्रचलित थाट पद्यति पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित है। पं॰ भातखण्डे ने गम्भीर अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन प्रचलित राग-वर्गीकरण की जितनी भी पद्धतियाँ उत्तर भारतीय संगीत में प्रचार में आईं और उनके काल में अस्तित्व में थीं, उनके रागों का वर्गीकरण आज के रागों पर लागू नहीं हो सकता। गत कुछ शताब्दियों में सभी रागों में परिवर्तन एवं परिवर्द्धन हुए हैं, अतः उनके पुराने और नए स्वरूपों में कोई समानता नहीं है। भातखण्डे जी ने तत्कालीन राग-रागिनी प्रणाली का परित्याग किया और इसके स्थान पर जनक मेल और जन्य प्रणाली को राग वर्गीकरण की अधिक उचित प्रणाली माना। उन्हें इस वर्गीकरण का आधार न केवल दक्षिण में, बल्कि उत्तर में ‘राग-तरंगिणी’, ‘राग-विबोध’, ‘हृदय-कौतुक’, और ‘हृदय-प्रकाश’ जैसे ग्रन्थों में मिला। आज हमारी चर्चा का थाट है...

ओल्ड इज़ गोल्ड - 500 : जब रिवाइव किया गया पहले हिंदी फ़िल्मी गीत "दे दे खुदा के नाम पर" को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 500/2010/200 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस माइलस्टोन एपिसोड में। एक सुरीला सफ़र जो हमने शुरु किया था २० फ़रवरी २००९ की शाम, वह सफ़र बहुत सारे सुमधुर पड़ावों से होता हुआ आज, ७ अक्तुबर को आ पहुँच रहा है अपने ५००-वें मंज़िल पर। दोस्तों, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस यादगार मौक़े पर हम सब से पहले आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैं। जिस तरह का प्यार आपने इस स्तंभ को दिया है, जिस तरह से आपने इस स्तंभ का साथ दिया है और इसे सफल बनाया है, उसी का यह नतीजा है कि आज हम इस मुक़ाम तक पहुँच पाये हैं। दोस्तों, इस यादगार शाम को कुछ ख़ास तरीक़े से मनाने के लिए हमने सोचा कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए कि जिससे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का यह ५००-वाँ एपिसोड वाक़ई एक यादगार एपिसोड बन जाए। १४ मार्च, १९३१ भारतीय सिनेमा के लिए एक यादगार दिन था, क्योंकि इसी दिन बम्बई के मजेस्टिक सिनेमा में प्रदर्शित हुई थी इस देश की पहली बोलती फ़िल्म 'आलम आरा'। 'आलम आरा' से ना केवल बोलती फ़िल्मों का दौर शु...